यात्रा वृतांत-होली पर चोपता / तुंगनाथ यात्रा ,हौसले और इरादों के साथ प्रकर्ति माता का आशीर्वाद ( भाग-2 )
दुनिया में गलत बात / चीज़ नज़रअंदाज़ मत करो ,उसका पर्दाफाश करो। तुम तो बच जाओ, कही आपका कोई अपना न फँस जाये
जय केदारा
आज होली का दिन और मन में एक लगन थी की बाबा की इस पावन धरती पर ,पावनधाम के द्वार-चोपता तक तो जाया ही जाये। सुबह-सुबह जब कमरे से बाहर निकला तो सड़क,गाडी और पेड़ पर बर्फ की मोटी चादर नज़र आयी और शानदार जबरदस्त सुन्दर नज़ारा था। मक्कू बेंड से चोपता 12 किलोमीटर है और इतना लंबा रास्ता बर्फ पर चलना आसान नही जब उच्चाई भी बढ़ रही हो साथ में। खैर सुबह परांठे खाये और लगभग 8 बजे हम तीनो भाई सुजान सिंह के साथ चल दिए। 3 किलोमीटर बाद दुग्गल बिट्टा तक ही राहुल थक गया ,क्योकि भाई थोड़ा मोटा है और यहाँ पर हम ने फिर से मैगी और चाय पी, दरबान सिंह जी के पास। दरबान जी का होटल है सरकारी गेस्ट हाउस के बिलकुल सामने। सुबह का टाइम था और दुग्गल बिट्टा से आगे ना कोई गया न ऊपर से कोई आया था इसीलिए दरबान सिंह जी बोले की बनियाकुंड के आगे जाना मुश्किल है। यहाँ से राहुल भाई वापस हो लिए, मै, नरेंद्र भैया और सुजान सिंह चल दिए बनिया कुंड की तरफ। कुछ किलोमीटर बाद मैने सूजन से कहा की सुजान हम छोटा रास्ता लेंगे जिससे हमारे 3 किलोमीटर कम हो जायेंगे क्योकि बनियाकुंड में हमें करना भी कुछ नहीं। सो बचा हुआ 9 किलोमीटर में से अब 6 किलोमीटर ही चलना था।
शानदार नज़ारे के साथ सुहाना सफर
ये छोटा रास्ता दरअसल पहले समय से तीर्थ यात्री इस्तेमाल करते थे जो तुंगनाथ जी या बद्रीनाथ जाते थे। ये उसी रास्ते का एक छोटा सा हिस्सा है जिससे सीधा चोपता निकलते है। ये रास्ता काफी ज्यादा सुन्दर है और इस बार बर्फ में तो मजा ही आ गया। पेड़ो पर एक एक फुट बर्फ और हर तरफ शानदार मैदान शायद शब्दो में इतनी खूबसूरत प्रकर्ति का वर्णन न कर पाए। ताजी बर्फ में चलना थोड़ा कठिन होता ही है क्योकि ताकत ज्यादा लगती है लेकिन बस यही सकून होता है की फिसलने का डर नहीं होता। बनियाकुंड की कुछ झलक भी दिखती है रास्ते से। यहाँ पूरे रास्ते में चोपता तक केवल एक ही पक्के निर्माण है, यानी की धर्मशाला है, अंग्रेजो ने बनवाई थी तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए।
ये एक मात्र निर्माण है पुरे प्राचीन रास्ते में -- अंगेजो ने तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला बनवाई थी
ये प्राचीन रास्ता दो पुल से होकर गुजरता है जो की अंगेजो ने बनवाये थे। दोनों तरफ बर्फ के अम्बार लगे हुए थे पूरे रास्ते। ज़िन्दगी में कभी नहीं सोचा था की कभी इस रास्ते दोबारा आऊँगा वो भी इतनी बर्फ में। पहली बार 2013 में ये रास्ता इस्तेमाल किया था जब भी बर्फ़बारी के कारण रोड बंद थी बनिया कुंड के 7 किलोमीटर पहले से और यही पर कुछ यादगार फोटो लिए थे।
2013 का फोटो - 7 किलोमीटर का मील का पत्थर यही से छोटा रास्ता शुरू होता है -2013 में यही पर टेंट लगा कर सोया था सड़क पर
ये प्राचीन रास्ता एक बार मुख्य रास्ते को होकर ऊपर की तरफ जाता है जो की क्रिस्टिन पीक नामक कैम्प के पास से चोपता निकलता है। होली का दिन और हर तरफ केवल बर्फ की सफेदी ही सफेदी। ऐसी होली किस इंसान को पसंद ना आये। जब क्रिस्टिन पीक के आगे चले तो लगभग 1 किलोमीटर बाद नागेन्द्र भाई को एक लोमड़ी दिखाई दी और इत्तेफाक से हम विडियो ही बना रहे थे। लोमड़ी बहुत तेज़ दौड़ रही थी लेकिन फिर भी उसका एक फोटो मेने अपने कैमरे से ले लिया और साथ साथ छोटा सा विडियो भी। ये पल याद आते ही मेरे को जनवरी का लेह लदाख में पांगोंग झील का सफर याद आ गया क्योकि वहा भी एक हिमालयन लोमड़ी बहुत देर तक गाड़ी के आगे आगे खूब तेज़ दौड़ती रही थी।
लोमड़ी और हिरण की तेज़ी बराबर ही लगी
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। खैर जल्द ही हम चोपता आ गए और सही रघुवीर भाई के होटल के साथ वाले रास्ते पर निकले और वो भी होटल के बाहर ही मिले और क्या उत्साह से मिले। गजब के इंसान है। यहाँ पर गरम दूध के साथ परांठे खाये और नागेन्द्र भाई से पूछा की आप चलोगे क्या तुंगनाथ जी की तरफ क्योकि दोनों की हालात ख़राब हो चुकी थी। बर्फ में रास्ता बनाना बहुत बड़ी चुनोती होती है। नागेन्द्र भाई ने मना कर दिया की तुम होआओ। मेरे को भी पता था की में तुंगनाथ जी के मंदिर या गणेश जी के मंदिर तक भी नहीं जा पाऊंगा लेकिन जितना भी सही जाना तो चाहिए। में और सुजान सिंह चल दिए चोपता से तुंगनाथ जी की तरफ, बर्फ़बारी शुरू हो चुकी थी । इतनी भयंकर बर्फ थी की 400 मीटर चलने में ही साँसे उखाड़ने लगी। भुजगाली बुग्याल तक विडियो और फोटो ली सुजान सिंह ने उसके बाद वो बोले की में और नहीं जा सकता। में आगे चल दिया की थोड़ा और आगे मनोज के ढाबे तक होकर आता हु जो भुजगाली से खड़ी चढाई पर 1 किलोमीटर पर है।
तुंगनाथ जी के रास्ते का प्रवेश द्वार और बर्फ से लदा हुआ ढाबा
हमसे पहले कोई नहीं गया था इसीलिए भयंकर दिक्कत आयी। में किसी तरह ऊपर चला लेकिन जब बर्फ कमर से ऊपर आनी शुरू हो गयी तो वापसी ही करनी पड़ी। बर्फ़बारी बहुत ज्यादा तेज़ हो गयी थी ,ईमानदारी से 50 मीटर दूर तक देख पाना भी मुश्किल हो गया था। इसीलिए मेने वापसी का सोचा क्योकि बर्फ़बारी में कभी नहीं चलना चाहिए , न जाने कब कितनी तेज़ हो जाये। वापसी में सुजान भुजगाली में ढाबे पर ही मिला और दोनों भाई वापसी हो लिए। नीचे पहुँच ही गए थे, देखा की नागेन्द्र भाई गेट पर ही है और बोले की में ऊपर ही आ रहा था। वो नींद भी ले चुके थे और इंतज़ार करके थक चुके थे इसिलए हमे देखने ऊपर आ रहे थे क्योकि हमे लगभग ३ घंटे हो गए थे इतने छोटे से रास्ते में , क्या करते बर्फ ही इतनी भयंकर थी। कुछ नवयुवक भी मिले उन्हें समय के हिसाब से वापसी और दूरी के बारे में बताया क्योकि मुझे ही पता है की रास्ता कैसे बनाया। और अँधेरे में कितना खतनाक होता जाता है जंगल।
कैमरे, दिमाग और शरीर यही तक स्वस्थ थे, बस
दोनों भाई ने 3 बजे वापसी शुरू की और बहुत जल्दी दुग्गल बिट्टा तक वापस आ गए। कमाल है जेसीबी वालो ने बनियाकुंड तक बर्फ हटा दी थी। और हम दोनों को अब बिना बर्फ के चलने में बिलकुल भी मज़ा नहीं आ रहा था। दुग्गल बिट्टा से मेने जेसीबी में लिफ्ट ले ली और जेसीबी के आगे वाले पंजे में बेथ कर एक नए जबरदस्त रोमांच का मजा लिया। ये जेसीबी के सफर का रोमांच में ज़िन्दगी भर याद रखूँगा। मज़ा आ गया और यात्रा का पूरा आनंद भी आ गया। जैसे ही में मक्कू बेंड पहुँचा में क्या देखता हु मेरे दोस्त जिनसे कल से बात हो रही थी वो सब मेरे को देख रहे क्योकि जेसीबी में आगे बैठ कर चलना अजीब से हरकत है ,जैसे कोई सॉउथ की फिल्म का हीरो एंटरी लेता है वैसे। यार पहली बार मिला वो भी ऐसे। सब घुमक्कड़ी ग्रुप के लाजवाब व्यवहार वाले इंसान। बहुत सम्मान व् प्यार दिया और ऐसा महसूस नहीं हुआ की में इनसे पहली बार मिल रहा हु।
वापसी का नज़ारा। . एक जगह जहा रोड से होकर गुजरना पड़ता है
रात को मक्कू बेंड पर ढाबे पर खाना खाते हुए फैसला हुआ की कल सुबह मक्कू में जल अर्पण कर वापस डेल्ही जाया जायेगा। सो सुबह ठण्ड में 6 बजे नहा कर में तैयार हो गया और दोनों भाइयो संग पहुँच गए मक्कू में जो 7 किलोमीटर है मक्कू बेंड से और यही पर तुंगनाथ जी की पूजा होती है जब तक ऊपर तुंगनाथ जी के मंदिर के कपट बंद होते है। दुलहंडी का दिन और सुबह सुबह महादेव जी को जल अर्पण किया और आरती की इससे अच्छी होली की कल्पना नहीं की थी। फिर गुंजिया का परशाद बाटा और वापस चल दिए हरिद्वार की तरफ।
मक्कू में - ये ही मंदिर में पूजन होता है तुंगनाथ बाबा का शीतकालीन समय में
बीच में बस व्यासी से 10 किलोमीटर पहले एक ढाबा खुला दिखा और उसी पर दोपहर का कहना खाया नहीं तो ऋषिकेश तक सभी कुछ बंद था। सही 5 बजे मेरठ आ गए और फिर दोनों भाई यहाँ पर अपने अपने घर।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
आपकी साहसिक यात्राओं को नमन
ReplyDeleteमक्कू बैंड पे पूरे ग्रुप का आपसे मिलना वाकई सुखद संयोग था।
Bhaut Bhaut dhanyavad, Kismat ki baat hai Kothari ji Sabhi ghumne walo ka ek saath itni sundar jagah pheli baar milna.
DeleteMast bhai
ReplyDeleteDhanyavad Bhaii ji
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Deleteबहुत बढिया भाई जी।
ReplyDeleteजेसीबी से मक्कू बैंड पर एंट्री वाला फोटो भी लगाइये।
ji bilkul , abhi update karta hu
Deleteशानदार यात्रा पोस्ट
ReplyDeleteDhanyavad Parihar bhai ji
Deleteशानदार यात्रा पोस्ट
ReplyDeleteDhanyavad Lokendra Bhai Ji
DeleteGreat Sunny Bhai
ReplyDeleteDhanyavad Yogesh Bhai JI
Deleteसाहसिक यात्रा .शानदार फोटो ........नरेश सहगल
ReplyDeleteDhanyavad Naresh Ji
Deleteसाहसिक यात्राओ के कायल है हम सब....मस्त फोटो सारे
ReplyDeleteGandhi Bhai, aap sab ka sneh hai jo hosla milta rehta hai visham praistithi me .Dhanyavad Bhai ji
Deleteआपकी साहसिक यात्रा के हम कायल है जबरदस्त फ़ोटोस....
ReplyDeleteआपसे मिलना हमारे लिए भी कम रोमांचक नहीं था सनी भाई ,बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर |ये सफ़र यूँ ही चलता रहे इसी शुभकामना के साथ जय बाबा तुंगनाथ |
ReplyDeleteJai Baba Ki, Har Har Mahadev. Ab to milna hota hi rahega Bhai ji
Deleteएक बार फिर शानदार ढंग से आपने यात्रा का वर्णन किया है। फोटोग्राफी की तुलना नहीं की जा सकती।
ReplyDeleteaap ko varnan pasand aya , matlab koshish safal . isse acchi aur kya baat. Dhanyavad
Deleteयात्रा जोरदार है सन्नी पर फोटू बड़े होते तो और आनंद आता
ReplyDeleteDahnyavad Darshan ji , aap ki guidance ke according mene ab pic ka size extra large hi kiya hai.
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