26 जनवरी को लाहौल स्पिति की तरफ बर्फबारी का सामना हौसले और तैयारी से कैसे किया ( भाग-2 )
जो हम सोचते है वो हम कर सकते है ,फर्क बस हिम्मत और तरीके का होता है
सुबह की ठंड और खिड़की से दिखता बर्फ की चादर ओढ़े पूरी घाटी । क्या चाहिए और घूमना सफल हो जाता है जब दिल खुश हो जाये, नहीं तो ख्वाइशे कभी पूरी नहीं होती। आराम से उठे और नहाने के बाद लगभग 11 बजे होटल से निकले। रात को भी २-3 इंच बर्फ गिरी थी क्योकि गाड़ी के शीशे और छत पर इतनी बर्फ जमा थी। गाड़ी में सामान रखा और बर्फ हटाई , गाड़ी के पिछले टायर में पंक्चर था जिससे काफी हद तक हवा निकल गयी थी। पंप लगाया और हवा भर दी , सामान हो तो फायदे बहुत। कुछ फोटो लेने के बाद रिकोंग पीओ को अलविदा कहा और चल दिए वापसी शिमला की और।
जब आगे नहीं जा सकते और समय की कमी नहीं हो तो घर वापिस क्यों जाना , हिमालय में बहुत सारी जगह है घूमने को। नाश्ता और लक्ष्य वापस टापरी के मशहूर पप्पू दे ढाबा पर निर्धारित की जाएगी। बारिश में चलते हुए हम टापरी रुके और खाना खाया ,लेकिन आज कहना इतना स्वादिस्ट नहीं मनाया था , पप्पू भाई को बोला की आज कुछ कमी रह गयी खाने के स्वाद में। यहाँ पर फिर एक कोल्ड्रिंक ली और टायर में हवा भरी और चल दिए। निर्णय ये लिया की या तो शिमला रुकेंगे या मण्डी। लेकिन में आज तक अपने जीवन में कभी शिमला नहीं रुका और न रुकने का मन था क्योकि जहा भीड़ होती है वहा मेरे दिल नहीं कहता रुकने को। उम्मीद थी की शाम होने से पहले अपने गन्तव्य तक पहुँच जायेंगे चाहे वो जो भी हो ,
वापसी में रिकोंग से नज़ारा
तक़रीबन 4 बजे के आस पास हम नारकंडा से पहले सैन्झ/साँझ आता है जो की एक दूसरा रास्ता भी है अगर कभी शिमला -कुफरी -नारकण्डा को छुए बगैर आपको रामपुर/स्पिति आना हो। सैन्झ आते ही पता नहीं गाड़ी कैसे मंडी वाले रस्ते पर हो ली। ये रोड सैन्झ -ओट -बंजर रोड जनि जाती है क्योकि ये होकर ही मंडी जुड़ती है। मुझे इस रोड के बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी और इसीलिए मेरे को याद है में मेने पंकज से कहा "ज़िन्दगी हमेशा मोके देती है कुछ नया सीखने और जानने के लिए शायद इसिलए हम इस रास्ते पर है आज " मेने ये सोचा था की आज मंडी होते हुए पाराशर ऋषि जायेंगे और तरकीबें 10 किलोमीटर पहले अगर बर्फ मिलेगी भी तो स्नो चैन लगा लूंगा क्योकि वहा इतनी कड़ी चढाई नहीं है ,क्योकि दिसम्बर में भी वहाँ पर
पाराशर ऋषि से पुरानी फोटो
अकेला बर्फ में मौज करता हुआ जा चूका हु। खैर वापस यात्रा पर चलते है, रोड बहुत ही शानदार है और ऊपर से दुर्गम रास्ता बोले तो केवल एक गाड़ी के लायक चोड़ी रोड है ऊपर से हर 100-200 मीटर बाद अँधा मोड़ और भी रोचक सफर बना देता है। इस रोड पर दो रास्ते जाते है मंडी से जिसका मुझे रात 6:30 बजे पता लगा। इस रोड पर एक ही मुख्य शहर आता है वो है आनी।
आनी - तूफान इंतज़ार करते हुए
सरकारी बस खूब चलती है और बस अड्डा भी है बकायदा। लेकिन गलिया बड़ी संकरी है। बीच रस्ते में कभी नदी आपके साथ होती तो कभी साधारण जंगल और कभी जंगल में चीड़ के पेड। घुमावदार रास्ते से होते हुए कुदरत ने शानदार नज़ारा दिखाया और क्या चाहिए था। अध्भुत
दिव्य रौशनी कहते हुए जा सनी जा जी ले --हाहाहा
शाम हो आयी थी और कार की लाइट जला दी थी लगभग 6 बजे होंगे तभी एक चमत्कारी मील का पत्थर दिखा। उस पर लिखा था जलोड़ी जोत 6 किलोमीटर। उसे पढ़ते ही मेरे होश उड़ गए क्योकि मुझे पता था इसको इतनी बर्फ़बारी में जालोड़ी पास को पार ही नहीं किया जा सकता , इतना तो मेने पढ़ा है और बहुत फोटो देखे है इसके पिछले कई सालो में। अब गाड़ी रोकी और घुमा कर खड़ी कर दी वापसी जाने के लिए और सोचा की नीचे कही रुक लेंगे , लेकिन दिल नहीं बोल रहा वापिस जाने के लिए। पंकज और रमन से राय ली तो रमन भी बोला " भाई ए है तो आगे ही चलते है वपास क्यों जाना " बस ये कहना था और मेने वापस गाड़ी घुमा दी जलोड़ी पास की तरफ। तो अब पता लगा की आनी से 5 किलोमीटर पहले जो रास्ता नीचे की तरफ जाता है वो भी मंडी निकल जाता है और उसपर बर्फ का कोई चक्कर नहीं।
चमत्कारी पत्थर ,जिससे देखने के बाद होश उड़ गए
खैर हममे वापस जाने की शक्ति थी भी नहीं । 3-4 बुजुर्ग जा रहे थे उनसे पूछा की आस पास कॊइ रुकने की जगह है क्या। उन्होंने बताया 500मीटर आगे खनाग में ही फारेस्ट वालो का गेस्ट हाउस है और उनसे गेस्ट हाउस वाले का नाम पूछ लिया फिर क्या भाई ने गाड़ी घुमा दी गेस्ट हाउस की तरफ। और जाते ही आवाज लगायी (भूल गया नाम अब, याद आते ही बताऊंगा कमेन्ट में ) और उन भाईसाहब के बाहर आते ही बोला " भाई पहचाना याद है या नहीं , रात में नहीं पहचान रहे या दाढ़ी बढ़ा रखी है इस लिए, 3 बार पहले भी रुक चुका हु यहाँ ,याद आया " वो भाई भी इक्कीस मिला और बोला " क्या भाई, क्या बात कर रहे हो पहचान लिया " .... हॅसना मत इसे पढ़कर और ये तीर कही भी इस्तेमाल करना खाली नहीं जायेगा। वहा खनाग के दो लड़के पहले से ही बैठे थे और पूरा गेस्ट हाउस खाली था , मतलब जिस कमरे में चाहो सो जाओ। रसोई में मैगी खाई और रमन पराठे लाया था उनका भी स्वाद लिया गया ,और सुबह सर्लोसर लेक जाने का प्लान बना जो की जालोड़ी जोत के ही पास है ,लगभग 5 किलोमीटर। रात को ही प्लान तैयार हो गया और सुबह 8 बजे निकलने का निर्णय हुआ और साथ में कुछ खाने का सामान चलना तय हुआ जैसे की पराठे और मैग्गी।
सबसे दाय वाला है गेस्ट हाउस का रखवाला
रूम काफी बड़े ही होते है इन सरकारी गेस्ट हाउस के और थोड़ी सुविधा ये मिल गयी की पंकज/रमन उन भाई का हीटर और ले आये अपने कमरे में। कुछ तो ठंडक कम हुई ही होगी। लेकिन रात की चुनोती अभी बाकि थी --- खराटे वाली चुनोती। उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
बहुत सुंदर वर्णन है
ReplyDeleteDhanyvad Tyagi Ji
Deleteबहुत बढ़िया भाई जी
ReplyDeleteपहचाना नही सुबह मेरठ से निकला था😀😀
Hahaha... Dhokha ho gaya is baar. Khair 5 din baad apse kedar baba ke yaha mulakat pakka hogi.
Delete"Travel doesn't become adventure
ReplyDeleteuntill you leave yourself behind."
hats off to you!
Thank you manish for appreciating . it's always good to see when someone appreciates .
Deleteबहुत अच्छा भाई, मुझे पहचाना टापरी में मिला था hahahahaha.
ReplyDeleteApko kyo nahi pehchanuga , bilkul pehchan liya bhai ji.
DeleteLike we're with u on the road to mandi and khanag.
ReplyDeleteShukriya Kandarp ji, Apka sneh aise hi milta rahe.
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