Tuesday, March 14, 2017

भगवान गणेश जी का जन्म स्थल डोडीताल यात्रा वृतांत और तेंदुए का डर ( भाग-1 )

                 वैसे इंसान बने , जिस तरह के इंसान से आप मिलना चाहते है

महाशिवरात्रि का महापर्व इस बार 26 फरवरी का था और इसीलिए साल की ये यात्रा में बिलकुल अकेले करता हु क्योकि गंगा जल लेकर आता हु। वर्ष 2012 से में हर वर्ष महाशिवरात्रि पर जल मुनेरि बांध के पीछे से कही भी बहती हुई धारा को नमन कर पूजन के लिए ले आता हु, नीलकंठ आश्रम में पर्व मनाता हु , क्योकि बांध के कारण जो जल की दुर्दशा हुई है उसका ये ही समाधान है। में फरवरी के महीने में हर वर्ष एक बार डोडीताल की यात्रा करता हु और अगली बार दयारा बुग्याल की, और फिर वापसी में जल लेते हुए घर वापसी।

यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है 

इस वर्ष डोडीताल यात्रा की बारी थी क्योकि पिछले साल दयारा बुग्याल की यात्रा की थी। वृतांत थोड़ा लंबा है क्योकि दो दिन का वर्णन एक पोस्ट में लिख रहा हु। तारिक 15 फरवरी 2017 की रात को डोडीताल की यात्रा का शुभ आरम्भ हुआ और हमेशा की तरह रात 1 बजे घर से गाड़ी में सामान रख चल दिया और 3:30 बजे सुबह हरिद्वार में विश्वकर्मा घाट पर गाड़ी रोक गंगा स्नान किया और लगभग 5 बजे ऋषिकेश पहुँच गया। यहाँ से में गंगोत्री-यमनोत्री मार्ग पर हो लिया क्योकि डोडीताल उत्तरकाशी के पास है। सुबह सही 9:15 बजे उत्तरकाशी पहुँच गया और गाड़ी में डीजल भरवाया और आगे चल दिया। कुछ किलोमीटर आगे चलते ही एक चेक पोस्ट है और वहा पर एक बोर्ड भी लगा है डोडीताल जाने का इशारा करते हुए। यहाँ से बाये ऊपर की तरफ संगम चट्टी नाम की जगह है जो लगभग 15 किलोमीटर है चेक पोस्ट से। संगम चट्टी से ही पैदल यात्रा करनी पड़ती है डोडीताल की, जो की 22 किलोमीटर की यात्रा है।
मेने 2015 में ये यात्रा भयंकर बर्फ में की थी और कमाल ये भी है की पता नहीं था की कहा खाने और रहने को मिलता है तो अपना स्लीपिंग बैग और टेंट का वजन भी कंधे पर ढोया था। इस बार तजुर्बा था इसीलिए टेंट नहीं लाया था और स्लीपिंग बैग के साथ साथ खाने में 30 परांठे और जैम लेकर आया था जिससे जो तकलीफ पिछली बार हुई इस बार न हो।
बुरांश की कली 
चेक पोस्ट से ऊपर घाटी में चलते ही रोड बहुत ही ख़राब है इस साल भी और रोह्डोडेन्डोडरोन ( बुरांश) फूल इस बार फरवरी में ही खिल गया जबकि ये मार्च/अप्रैल में खिलता है। ये संकेत थे इस वर्ष की गर्मी के। खैर संगम चट्टी आराम से रुकते रूकाते हुए गया क्योकि विडियो और फोटो लेने में टाइम लग गया , क्योकि अकेले में काफी समय और संयम से विडियो/फोटो लेनी पड़ती है। संगम चट्टी पर मेने अपनी गाड़ी एक मात्र ढ़ाबे से सटा कर खड़ी की जिससे देख रेख हो सके और में 1 बजे अगोडा गांव जो की 5 किलोमीटर है संगम चट्टी वहा के लिए चल दिया।
यहाँ से पैदल चढाई शुरू होती है -संगम चट्टी पुल 
2016 नवम्बर में केदारताल यात्रा (गंगोत्री के पास ) में सोनू जो मेरा गाइड था उसका घर अगोडा में ही है इसीलिए मेने उसको फ़ोन किया और बता दिया की में आ रहा हु। जैसे ही में थोड़ा चला एक काला कुत्ता मेरे साथ हो लिया और अगोडा तक हम साथ ही चले। धुप भयंकर तेज़ थी, यकीं मानिये ३-4 बार रुका और एक बार रास्ते पर 15 मिनट तक एक पत्थर के कमर लगा कर सो गया क्योकि धुप ने मेरी सारी शक्ति चूस ली थी। अगोडा पहुँचा तो मनु और उसके परिवार वाले काफी खुश हुए। वो संगम चट्टी इसलिए नहीं आ पाया क्योकि घर पर हवन और पूजन चल रहा था। जाते ही चाय और आलू आ गए खाने में लेकिन मैंने मन रखने को चाय पि क्योकि में चाय पिता नहीं और आलू खाने का मन नहीं था लेकिन कही उन्हें बुरा न लगे इसलिए चाय और उनका, दोनों का सम्मान रखा।
पूजन में लहराता संकटमोचन का झंडा 
शाम को जब उनके परिवार वाले पूजन के बाद अपने अपने घर चले गए और मनु को फुरसत हुई तब दोनों ने बैठ कर बात की और मेने अपना प्रोग्राम बताया। मनु का घर का काम चल रहा था इसलिए वो आ नहीं सकता था मेरे साथ, लेकिन इसे मुझे कोई समस्या नहीं थी क्योकि मेने पहले भी यात्रा की हुई थी और इस बार तो तैयारी भी पूरी थी।
सुबह की तैयारी -चलते हुए 
अगले दिन सुबह 17 किलोमीटर की यात्रा करनी थी लेकिन 8  बज गए नहाने धोने में और फिर इस बार उनके भाई का कहने पर आज फिर से चाय पीनी पड़ी। मेहमान नहीं परिवार की तरह होते है कुछ इंसान इसीलिए नियम में छूट करनी चाहिए। खैर नाश्ता में मनु ने भी आलू के पराठे रख दिए और 9 बजे चलने के बाद भी चढाई भरे रास्ते पर चलते हुए जल्द ही में बेवरा चट्टी आया और यहाँ फारेस्ट ऑफिस है, फारेस्ट वाले नेपाली ने मुझे आगे जाने माना कर दिया की आगे जाने के लिए परमिशन चाहिए। मेरा दिमाग गुस्से में तुरंत ख़राब हो गया क्योकि ये लोग अपने रुपये बनाने के चक्कर में नए लोगो को फसा लेते है। मेने तुरंत गुस्से में बताया यहाँ न तो पहेली बार आया हु और ना ही यहाँ परमिशन चाहिए और में यहाँ यात्रा पर आया हु जल लेने न की घूमने , और काफी बाते कही जिससे उसे पता लग गया की ये बाँदा नहीं फसेगा सो उसने आगे जाने से फिर नहीं रोका। जो भी पानी भरना हो तो ये आखरी जगह है अगले 11 खड़े किलोमीटर तक बीच में कही भी पानी पीने का स्रोत्र नहीं है। 
इस सीमेंट और टंकी की जगह से २० कदम ऊपर से पहला शॉर्टकट U टाइप रास्ता  
बेवरा से 4 किलोमीटर आगे है धारकोट और इस दौरान बीच में २ शॉर्टकट पड़ते है। सबसे पहले एक जगह से दो रास्ते जाते है उसमे बीच से अगर जाये ( मतलब U -एक दाये जाता है नीचे गाँव में और दूसरा बाए जो मुख्य रास्ता है  और बीच का शॉर्टकट ),तो ऊपर रास्ते पर ही मिल जायेंगे जो पहला शॉर्टकट है। और दूसरा आता है तक़रीबन इस जगह से 1 किलोमीटर बाद मेरी राय ये है की इस पर जाने की जगह रास्ते से चले क्योकि ये बहुत ज्यादा खड़ा रास्ता है। धारकोट में एक छतरी है जहा बैठ कर शानदार जानदार नज़ारे मिलते है प्रकर्ति के और सामने दयारा बुग्याल भी दीखता है पूरा बर्फ से लदा हुआ। यहाँ पर बैग से संतरे निकले और खाये क्योकि मेरे पास भी एक बोतल ही पानी था 600 मिलीलीटर बस और धुप तेज़ होने के कारण में सारा पानी पी गया था।
जाते वक़्त आराम के क्षण धारकोट की छतरी पर 
और अभी भी माझी गांव धारकोट से 5 किलोमीटर दूर था ,पहाड़ के 5 किलोमीटर। खैर हिम्मत करते हुए जैसे तैसे में चलता रहा और इस बार बर्फ बिलकुल भी नहीं थी, नहीं तो 2015 में 13 फरवरी को ही मेने ये यात्रा की थी और धारकोट से 2 किलोमीटर आगे से ही बर्फ से पूरा रास्ता ढका हुआ था। मांझी से बस जरा सा पहले ही कान में पानी की आवाज़ आयी और पैर अपने आप और तेज़ चलने लगे एक धारा झरना रूपी दिखा , बैग पटक पानी पीना शुरू किया, 5 मिनट तक पानी पिया रुक रुक कर , बहुत ठंडा था ना। फिर 10 मिनट में ही मांझी आ गया और यहाँ एक भाई मिला नरेंद्र नाम के। दरअसल अगोडा इस भाई की ससुराल थी तो ये भी मांझी तक घूमने आ गए। मेरे को देख उनको भी मन हुआ डोडीताल का और बोले "अगर आप के पास ओढ़ने को कुछ है तो क्या में भी चलु। " में स्लीपिंग बैग और एक अच्छी मोटी गरम चादर लेकर चलता हु। बैग खोला और उनको चादर दिखाई फिर वो तैयार हो गए साथ में चलने को। मांझी में भी केवल थोड़ी सी ही बर्फ थी क्योकि जिस जगह बर्फ पर धुप नहीं गिरती बस वही बर्फ बची थी। काफी जगह हिरण ,लंगूर और मोनल पक्षी दिखे लेकिन 2015 के मुकाबले बहुत ही ज्यादा कम दिखे।
मांझी गांव --इस बार बर्फ ही नहीं थी यहाँ 
थोड़ी देर में भैरो जी के मंदिर आ गया और यहाँ से डोडीताल केवल 1 किलोमीटर रह जाता है। लगभग 4 बजे हम पावन धाम डोडीताल पहुँच गए और गणेश जी और पवित्र झील को नमन कर रात को रुकने की जगह ढूंढने लगे। किसी की इज़्ज़त के बिना ताला तोडना सही नहीं होता भले ही आप कुछ चुरा न रहे हो इसी सोच की वजह से माँ अन्नपूर्णा के मंदिर के बरामदे (प्रांगन ) में सोने का फैसला किया जो की ३ तरफ से बंद था लेकिन एक तरफ से खुला था और तीनो तरफ खिड़की थी जो बंद नहीं हो रही थी। तेज़ ठंडी हवा रात में परेशांन करने वाली थी यह आभास हो गया था दोनों को।
झील और मंदिर 
 जंगली जानवर का डर था क्योकि भालू ,तेंदुए होते है इस घाटी में और जहा हिरन हो ,वह तो तेंदुए भाई जी तो पक्का होते ही है। इसीलिए रात होने से पहले लकड़ी इखट्टी कर ली जिससे रात को आग लगा सके जो सुबह तक हम ज़िंदा बचे रहे। शाम को गणेश जी की आरती की और फिर से पराठे और जैम खाया। अरबो खरबो सितारों के नीचे इतने बड़े पावन धाम पर ठण्ड में आग सेकते हुए खाने खाने का सकून शायद शब्दो में बताना मुश्किल।
सितारों की गोष्ठि 
लेकिन खाना खाते हुए 3-4 बार भयंकर आवाज़ आयी और हमारी हालात ख़राब ही गयी क्योकि इतना यकींन हो गया था की शिकार हो रहा है किसी का। खैर डरते हुए अपने दोनों चाकू निकाल कर अपने पास रखे और खाना खाया। फिर शुरू की फोटोग्राफी। रात के शानदार नज़ारे जिनके लिए दिल तरसता है ,इतने बड़े और तेज़ रौशनी में तारे बहुत कम देखने को मिलते है पहाड़ो पर भी।

आप,केम्प फायर ,प्रकर्ति/पहाड़ ,करोडो तारे और ठण्ड --ज़िन्दगी में यही तो चाहिए 
सितारों का पेड -- दिल कहे रुकजा यही पर कही -लेकिन तेंदुआ है अभी 
रात का खौफ और एक दिन में घर वापसी तक के सफर की कहानी अगले भाग में

उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा। 
सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

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धारकोट और बोर्ड 
भैरो जी के मंदिर के पास बोर्ड संग 


बेवरा चट्टी के बाद लिया गया फोटो 
ऐसी रात का एक अलग ही मज़ा और याद होती है 

तंदूर की तरह -जुराबे सुखाते हुए 

डोडीताल का नज़ारा , मंदिर-ताल और बर्फ 

जगीरा 

बिन स्वार्थ के जुड़ा हुआ साथी 

अन्नपूर्णा मंदिर - यही आंगन में रात को सोया था 

धारकोट -बोर्ड संग 

भैरव जी का मंदिर -यहाँ से 1 किलोमीटर है डोडीताल 


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