Wednesday, February 15, 2017

एक तूफानी सफर,पहला इंसान जिसने दिसम्बर महीने में सच पास पार किया,मोटरसाइकिल पर ( भाग -3 )

                  -----------------  जिंदगी में खुश रहना है तो, दिल की सुनो ----------------------------  
मुसाफिर 

आज तीसरा दिन था यात्रा का और शायद सबसे आराम भरा , लेकिन दुनिया की सबसे खतरनाक रोड पर बाइक चलाने का अनुभव लेना बाकि था , क्या सही में यह सबसे खतरनाक है भी।

सुबह नहाने के बाद होटल के मालिक ,जो आर्मी से थे ,उनके साथ एक विडियो ली और नीचे आ कर बाइक की चैन पर धीरेन्द्र ने एक स्प्रै किया जो ग्रीस का काम करता है और फिर नाश्ता करने के लिए मनोज वैष्णो ढाबा पर रुके जो मात्र 100 मीटर पर ही था और उसको परांठा खाने ने बाद कल के भयंकर और खौफनाक रास्ते के बाद पेट्रोल भरवाने का निर्णय लिया और किल्लाड़ के एकमात्र पेट्रोल/डीजल विक्रेता से पेट्रोल लिया और निकल पड़े अपनी तीसरे दिन की यात्रा पर। लगभग 3 किलोमीटर ही चले होंगे तभी सामने से एक बस आयी और हमे बचने के लिए बाइक को वापस मोड़ कर सही जगह आना पड़ा जिससे बस निकल सके। इससे ये अंदाजा हो गया था की रास्ता काफी मुश्किल हो अगर जुलाई-अगस्त में आया होता ,क्योकि उस समय सीजन होता है घूमने वालो का।
मनोज वैष्णो ढाबा 
रेतीला  रास्ता  और कुछ किलोमीटर बाद एक जगह पहाड़ खिसका हुआ था जिसको जेसीबी वाले हटा रहे थे, तो लगभग 20 मिनट बाद हम आगे बढ़ते रहे नदी के साथ साथ। रास्ता में बस बर्फ जमी हुई नहीं मिलने वाली थी और इसी चीज़ का सकूँन था बस, नहीं तो रास्ता भयंकर ख़राब और पत्थर से भरा जिसमे इन्सान की कमर की बैंड बज जाये। यहाँ एक जगह आयी जहा पर आतंकवादियो ने 35 लोगो को एक साथ मार दिया था जिससे ये रास्ता ना बन सके क्योकि किश्तवाड़ और डोडा में सबसे ज्यादा आतंकवादी गतिविधियां होती है। फिर एक चौकी आयी हिमाचल पुलिस की , उन्होंने हमारे पेपर की जानकारी रजिस्टर में ली जैसे की लाइसेंस, बाइक का इन्सुरेन्स ,पोल्लुशन। फिर आगे बढ़ते रहे और हमे एक लकीर सी दिखी पहाड़ में जिसको कहा जाता है सबसे खतरनाक रोड , क्योकि संकरी  रोड है और खाई 150-200 मीटर कम से कम। मतलब यु की, अगर बदकिस्मती या लापरवाही के चलते खाई में गिरे तो हवा में ही प्राण निकल जायेंगे, इतनी गहराई में गिरने से पहले ही दिल के दौरे पड़ने से मौत नहीं तो नीचे पहुँच कर तो सौ प्रतिशत सीधा भगवान से मुलाकात।
थोड़ी तो हवा टाइट होती है 
बाइक चलाना 10 साल पहले ही छोड़ दिया था इसिलये शौक़ नहीं और जैसे की मुझे ट्रिप के फोटो और विडियो बनाने का शौक है तो मेने अपनी बाइक योगी भाई को दे दी और राकेश के साथ हो लिया। अब जैसे ही खतरनाक रोड शुरू हुई मेरी और राकेश की हँसी ना बंद हो, डर के मारे और कही कही तो राम राम राम मरा मरा मरा निकलता था (मजाक में ) . दरासल रोड की चौड़ाई कम नहीं है जितना की उसके साथ में खाई की गहराई का खौफ होता है। बाइक के लिए तो कुछ भी खतरा नहीं लेकिन गाड़ी में तो भाई जी कसम से दिल गले में रहता।  इसीलिए शायद हो पाया तो जुलाई में सच पास कार से करूँगा और फिर इस रोड से होता हुआ लेह लदाख जाऊँगा सम्मिट के लिए।
धागे जैसे रास्ता 
रास्ते में पानी और मस्त मजा बांध देता है जिससे डर लगता है की कही टायर न फिसल जाये। बीच में एक बहुत ही विशाल और शानदार झरना आता है जो पहाड़ की चोटी से  निकलता है और पहाड़ के पत्थर पर फिसलता हुआ नीचे आता है ये नज़ारा सच में मन मोह लेता है , विडियो में है उसकी झलक।सफर अगर कार में होता तो वास्तिविकता में खतरनाक है क्योकि कार के आगे अगर बाइक भी आ जाये  तो बचने की जगह नहीं होती काफी दूर तक और गाड़ी आ जाये तो चंद्रताल के रास्ते की तरह दूर से ही जगह ढूंढ ले पास देने के लिए नहीं तो मुसीबत के लिए तैयार रहे।
झरने के नीचे 
इतना रास्ता ख़राब है क्या बताऊ मेरी बाइक का साइलेंसर का बोल्ट निकल के भाग गया कही और योगी भाई ने चिल्ला कर रुकने को कहा। अब समस्य को देख यह सोचने लगे की क्या करे इतने में धीरेन्द्र आया और बोला भाई मेरे पास है ये बोल्ट।  हम तीनो ने ख़ुशी के आँसू वाले तरीके से उसकी तरफ देखा क्योकि हमारे पास तो एक तार भी नहीं था जिससे बांध सकते।  जब भाई ने अपना बैग खोले तो क्या देखता हु की वो तो पूरी दुकान लेकर चल रहा था , ना जाने कितने  तरीके के बोल्ट,तार,नट,क्लच प्लेट ,बैरिंग, ब्रेक शू और ना जाने क्या क्या। धीरेद्र बड़ा ही मस्त और साफ दिल का लड़का है और वो लेह , नेपाल , भूटान भी बाइक से कर चूका है इसीलिए उसके पास बुलेट का बहुत तजुर्बा है।
बोल्ट लगाते हुए 
इस खतरनाक रोड को पार किया और बताऊ तो आगे 3-4 जगह ऐसी आयी जहा बुलेट को भी धक्का लगाया चढ़ाई पर। चलते चलते नोगाँव  15 किलोमीटर पहले शानदार रोड शुरू हुई जो केवल नोगाँव तक ही थी उसके बाद बहुत ख़राब रोड थी।  नोगाँव में शानदार स्टेडियम बनाया हुआ है क्रिकेट का और एक अच्छा गोम्पा  बुद्धिस्ट धर्म का। यहाँ पर हम 2:30 बजे के आस पास पहुँच गए और फिर एक मोड़ पर धीरेन्द्रे बाइक के साथ लेट गया , दरासल सामने से कार आ गयी और मोड़ काफी खड़ा था तो उससे बचने के चक्कर में रोड से नीचे बायीं तरफ पत्थर होने के कारण फिसल गयी।  आज भी समय काम होने के कारण कुछ नहीं खाने का फैसला लिया और किश्तवाड़ में एक जगह आर्मी  अपने रजिस्टर में एंट्री की और जाने दिया कुछ हिदायत दी चौकना रहने जैसी। मुझे रस्ते याद रहते है रास्ते में आने वाले  शहर के नाम नहीं।
बीच में कही 
अब पटनीटॉप बहुत दूर था  डोडा में कोल्ड ड्रिंक खजूर और चिप्स खाये केवल और अभी लगभग 90km और बचे थे, ऊपर से  रोड साथ नहीं दे रही थी। आखरी 40 km अँधेरे में पुरे किये शुक्र है ठण्ड ज्यादा नहीं लग रही थी। लगभग 7 बजे पटनीटॉप आ गए।  जदोजहद होटल में कमरे की शुरू।

मैन हाइवे से पटनीटॉप को ऊपर जाने का जो रास्ता है वही पर 4 -5 होटल है हमने उनमे से एक जसका नाम स्नो व्यू पॉइंट है उसमे दो कमरे लिए वैली की तरफ के जिससे सुबह नज़ारा तो देख सके।  होटल का किराया 800 रूपया था। और उसी के पास एक बढ़िया वैष्णो ढाभा वाला और बहुत ही अच्छा स्वादिस्ट खाना खिलाया। एक ही बात कही उससे जो भी लाना दो लाना सुबह से कुछ नहीं खाया  , मन भर के खाया। फिर वापस एक कमरे में विश्वप्रसिद्ध ताश का द्वंद्व युद्ध शुरू और आज योगी भाई नहीं हारे। आज धीरेन्द्र 4 पायदान पर गर्व से विराजमान हुआ।  सुबह राकेश और योगी को धर्मशाला जाना था इसीलिए अलग अलग निकलने का फैसला लिया क्योकि मेरे को माँ वैष्णो देवी के दर्शन के लिए जाना था क्योकि काफी समय से माँ ने अपने दरबार बुलाया था  जबकि हर महीने कही घूमने या यात्रा पर जाता हु लेकिन 9 साल पहले परिवार संग दर्शन किये थे और जब से वैष्णो माँ का बुलावा नहीं आया था और यह सब यात्रा माँ ने अपने दर्शन देने के लिए ही रची थी। 

उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा। 


सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

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कुछ तो खास है झरने में 
किश्तवाड़ की तरफ 
यहाँ गोम्पा और क्रिकेट का शानदार ग्राउंड है 

काली रोड आते ही आराम किया 
यहाँ  अच्छी मशकत होती है बाइक की 
शानदार नज़ारे 
पेट्रोल भरवाने के बाद किल्लाड़ गेट से 
जम्मू कश्मीर सीमा शुरू। .यही पर चौकी है हिमाचल पुलिस की 
विशाल सुन्दर झरना 


Thursday, February 9, 2017

एक तूफानी सफर,पहला इंसान जिसने दिसम्बर महीने में सच पास पार किया,मोटरसाइकिल पर ( भाग -2 )

------जूनून के साथ में सही जानकारी और सही तैयारी का होना बहुत जरूरी है----


तैयारी और हिम्मत 
जब तैयारी अच्छी की हो तो भी जरुरी नहीं की अंजाम सकून भरा हो।  ऐसा ही कुछ अनुभव था आज की सच पास की यात्रा का। जीवन में कभी इतना नहीं डरा बहुत सारी यात्रा की है 2003 से अकेले , लेकिन इतनी विषम परिस्थिति पहली कभी नहीं आयी। मेने 7 बार भयंकर जंगलो में, अँधेरे में भी ट्रैकिंग की है जिसमे रात के 11 बजे तक 3-4 फुट बर्फ में चला हु जबकि लक्ष्य का पता तक न था , 3 दिन में दिल्ली से मणि-महेश कैलाश यात्रा पूरी कर के वापस दिल्ली आया हु वह भी कार से ड्राइविंग कर के अकेले और बहुत सारी यात्रा की है ऐसी चुनोतियो भरी लेकिन इस यात्रा का एक अलग ही डर बैठा दिमाग में जिससे रात में सोने के बाद भी खौफनाक सपने आये जिनमे में खाई में गिर कर मर गया। और ऐसा अनुभव मुझे ही नहीं मेरे साथी दोस्त धीरेन्द्र और राकेश को भी हुआ। 

आज का यात्रा वृतांत थोड़ा लंबा है क्योकि बताने का मजा तभी है जब अपने भाव भी बताये और पढ़ने वाला महसूस करे जैसे वो भी साथ ही था। 

सुबह 5:30 बजे नींद खुल गयी और तक़रीबन 15 मिनट बाद में अपना कैमरा लेकर में कमरे से बहार निकल आया और सूरज की किरणों से सामने वाले पहाड़ पर लालिमा खूब मन भा रही थी। शान्त जगह ,पहाड़ , चिडयों की चह-चाहट और ठंड और ऐसा नज़ारा हर दिन मिले ऐसा प्रकर्ति से लगाव रखने वाला हर इंसान सोचता है। कुछ फोटो लिए और वापस रूम में गया तो धीरेन्द्र भी जाग गया था और में तौलिया लेकर चला जिससे सुबह के सबसे जरूरी काम पूरे किये जाये और उस पर जब में बाथरूम में गया तो में ऐसा डरा जैसे लडकिया कॉकरोच , छिपकली या चूहे को देख कर डरती है , क्योकि वहा एक देसी जुगाड़ पानी गरम करने वाला बाथरूम में लटकाया हुआ था वह भी टंकी  के पास और उसके तार स्विच बोर्ड में लगे हुए थे, पहले डरते हुए उसे निकाला क्योकि चप्पल भी गीली थी और फिर नहाया। नाश्ता करने के लिए हम चामुंडा होटल में ही गए और सही 7:30  बजे हम सब ने पराठे खाये क्योकि उसके पास ज्यादा आलू भी नहीं थे, खैर जूस और पराठे से भूख को खत्म किया। सामान लिया ओर पैसा दिए और निकल पड़े सच पास की भयंकर जानलेवा चोटी की औऱ। 
बैरागढ़ से चलते वक़्त 
भगवान का नाम ले कर बाइक चालू की और पुलिस चौकी पर रुके तो नए चेहरे को देखा और बोला की हमारी एंट्री है रजिस्टर में तो उसने अचरज भरी निगाहों से देखा फिर चैक किया और बोला "बहुत ज्यादा सावधानी से जाना खास कर नीचे उतरते वक़्त" उसका यह कहना था और हमे भी एक दूसरे की तरफ देखना था। रोड तो गायब हो गयी थी चौकी पर से ही बस अब एक कच्चा रास्ता वो भी उबड़ खाबड़ और पत्थर से भरा सो पेट में जो था वो जैसे जूसर मिक्सर में सब मिल जाता है वो ही उसके साथ हो रहा था। अभी 5 km ही चले थे के इतने में रोड पर आइस जमी हुई मिलनी शुरू , झरने जमे हुए और हम भी उत्साह में बाइक रोक कर फोटो लेने लगे और यह भूल गए यह तो शुरुवात और आगे न जाने क्या स्तिथि है। 
तजुर्बा सबसे बड़ा अध्यापक होता है 
फिर शुरू हुआ उस तजुर्बे से जिसे बर्फ (ICE) कहते है। कार तो मेने काफी बार चलायी है बर्फ और हिमपात (SNOW) में लेकिन बाइक केवल एक बार वो भी ज्यादा नहीं क्योकि बाइक चल नहीं पायी और बाइक वही पर छोड़ कर आगे जाना पड़ा था। रास्ता ख़राब ऊपर से ,जैसे ही चले आगे मोड़ पर पूरी सड़क पर बर्फ की मोटी चादर, बाइक लेकर ऊपर चले भाई क्या फिसले, होश उड़ गए। एक तरफ गहरी खाई दूसरी तरफ फिसल कर गिर जाने से चोट का डर और वो भी इतनी ज्यादा ठण्ड में। दो लेयर जैकेट और वाटर प्रूफ दस्ताने में भी ठण्ड शरीर को चीर रही थी। खैर राकेश ने हतोड़ा निकाला और हो गया बर्फ तोड़ने शुरू , लेकिन बर्फ में जितनी जगह में चोट मारे उतनी जगह बस एक निशान सा मन जाये और कुछ नहीं फिर हम बड़े बड़े पत्थर लेकर शुरू हो गए तोड़ने की बाइक के टायर या हमारे पैर को कही तो ग्रशण मिले जिससे गिरे न खाई में। एक बाइक को तीन जने पकड़ते वो भी समतल जगह में और बैठने वाला अपने पुरे ध्यान और ताक़त  से बाइक को कण्ट्रोल करता और फिर भी एक ही आवाज़ निकलती थी सभी की रोको रोको रोको। सही बताऊ शायद चीटी भी तेज़ चल रही होगी हमसे और तब भी हमारी हालात भयंकर ख़राब थी। वो 30km न जाने कितने भयंकर बर्फ के टुकड़े आये और हम कुछ जगह हिम्मत कर विडियो बनायीं वो हम ही जानते है कैसे बनायीं।  
चादर ट्रेक (लेह) में भी ऐसा ही झरना है 
लेकिन बीच में इसके जगह बहुत ही विशाल और सुन्दर झरना आया और ये झरना मुझे मेरे चादर ट्रेक (लेह-लदाख) की यादे ताज़ा कर गया। खास बात ये थी की जहा भी बर्फ जमी होती थी रोड पर वो कम से कम 25 -100 मीटर  का टुकड़ा होता था इसीलिए बहुत ज्यादा डर और दिक्कत का सामना हुआ। आपको आगे बताऊंगा की बर्फ पर बाइक चलते वक़्त किस बात का ध्यान रखना चाहिए । 
अनगिनत जमे हुए शानदार झरनों में से एक 
एक बात सोचने की है की सीधे रास्ते पर जब बर्फ पर हम भी आराम से खड़ा तक नहीं हो सकते तो कोई बाइक को कैसे सम्हालेगा और वह भी चढ़ाई या ढलान पर।  एक बार बर्फ पार करते वक़्त मात्र 1 सेकंड के लिए मेरा ध्यान हटा था और इतने में ही बाइक फिसल गयी थी और यह पल विडियो में भी है। 

लगभग 12-15  ऐसे खतरनाक टुकड़े पार कर हम पहुँच गए सच पास और यहाँ पर आने के बाद जो खुशि मिली शब्द कम पड़ जाये। अंदर मंदिर में जयकारे लगाए और प्रार्थना की और आराम से जूस पिया हम चारो भाइयो ने। कुछ फोटो लिए और चलने का फैसला लिया क्योकि समय हो गया था 2 pm . क्या, 35 किलोमीटर हमने 5:30 घन्टे में पुरे किये ----- शुक्र है किये तो। 
@ सच पास 
10 मीटर ही चले होंगे नीचे की तरफ, देखते है की पूरे रस्ते पर बर्फ ही बर्फ जमी हुई है और कुछ दिख ही नहीं रहा आखरी तक जहा तक मोड़ है। बाइक रोकी और तीनो ने एक दूसरे की तरफ देखा और हँसना शुरू और बोले "जय शंकर भगवन की........... चलो हिम्मत के साथ" वास्तिविकता में अब पता लगा की चढाई के मुकाबले उतराई में तो दस गुणा ज्यादा खतरा होता है। ऊपर या समतल हिस्से पर जाते वक़्त होता क्या है की टायर एक ही जगह घूमता रहेगा या फिर आगे नहीं जायेगा और पीछे फिसल जायेगा जिसके लिए कोई साथ में होता है आगे धक्का देने के लिए लेकिन नीचे उतारते वक़्त तो कुछ न भी करो, तब भी बर्फ पर बाइक पूरी गति से फिसलती है और अगर गलती से ब्रेक लगा दिते तो बाइक से पूरा नियंत्रण खत्म हो जाता है और फिसल कर खाई में गिरने का डर लगातार भयभीत करता है।

आज सोचता हु की में जब चिलाता था जीरो की स्पीड से जीरो की स्पीड से तो हँसी आती है शून्य तो शून्य होता है लेकिन जब खुद एक कदम न रख पाओ उसपर बाइक भी सम्हालनी है और वो फिसल भी रही हो , और साइड में 100-150 मीटर गहरी खाई हो तो ऐसा ही होता है ,ऐसा एक पल भी विडियो में है देखिएगा। 

खैर हिम्मत के साथ हमने काफी जमे हुए झरने और बर्फ वाले हिस्सो को पार किया।  सूरज ढल गया था और अँधेरा में हम फारेस्ट चौकी पर पहुँचे .यानि 20 किलोमीटर 4:30 घन्टे में। अब हम बिलकुल थक चुके थे और इतने भयंकर पत्थर से भरे उबड़ खाबड़ रास्ते पर  तेज गति से बाइक चला रहे थे। उसमे भी मेने काफी जगह एक हाथ से बाइक चलायी और एक हाथ से रिकॉर्डिंग की क्योकि मेरा गो प्रो कैमरा लेह में स्टॉक कांगड़ी सम्मिट के दौरान खो गया था।
एक एक बूंद पानी से जमे 15-20 फुट तक के साइकल्स 
सही 8 बजे के आस पास हम किल्लाड़ पहुँचे और PNB के ATM के सामने होटल है उसमे रुके और शायद 800 रुपये क्रिया था एक कमरे का ,कमरे अच्छे थे। भूख बहुत भयंकर वाली लगी थी इसीलिए वहा का एक मात्र वैष्णो ढाभा ,मनोज भोजनालय पर पहुँच गए और क्या जबरदस्त स्वादिस्ट खाना खिलाया दिल खुश हो गया. इतना थकने के बाद भी सभी एक रूम में आये और वापस ताश का खेल शुरू आखिर मानसिक थकान भी तो मिटानी थी। और आज भी योगी भाई हार गए लेकिन कल जीत का परचम लहराने की बात करते हुए 11 बजे अपने कमरे में चले गए।

इसी बैंक एटीएम के सामने होटल में रुके 
यकीन मानियेगा रात में पहले एक घन्टे नींद नहीं आयी और बंद आँखों में भी खाई में गिरने का ख्याल आता रहा और दिल में दहशत का आलम था और सुबह नींद भी इसीलिए खुली क्योकि में सपने में खाई में गिर कर मर गया।
बून्द बून्द से जमे ज़िन्दगी , कुछ ऐसा ही बया करती ये जगह 
फिर 5 बजे बाद नींद नहीं आयी और आज के रोमांच से बिफ़िक्र था क्योकि आज सफर था दुनिया की सबसे जानलेवा रोड का सफर -------किल्लाड़ से किश्तवाड़ का सफर। 
दुनिया की सबसे खतरनाक रोड। . किल्लाड़ से किश्तवाड़ 
उम्मीद है आप सबको वृतान्त अच्छा लगा होगा। अगले हिस्सा किल्लाड़ से किश्तवाड़ जल्द ही 


बर्फ में बाइक चलाते वक़्त कुछ अवश्य बाते:

1 - संयम - कभी भी जल्दबाज़ी न करे बर्फ में ,नहीं तो दुर्घटना होगी ही।  
2 - आगे वाले ब्रेक कभी भी न लगाए क्योकि इससे हमेशा टायर फिसलेगा हैंडल घूमेगा।  
3 - हमेशा पहाड़ की तरफ चले , गलती से भी खाई की तरफ न जाये बर्फ में। 
4 - बर्फ में हमेशा साथी दोस्तों की मदद ले और उनके साथ ही चले,क्योकि अगर  कही फिसले या धक्का      लगाना पड़े तो वो सम्हाल तो लेंगे  , मुसीबत कह कर नहीं अति।  
5 - जब भी बर्फ में चलाये जितना ज्यादा धीमे चला सके उतना अच्छा क्योकि नियंत्रण भी उतना अच्छा            रहेगा और ब्रेक भी कम लगाने पड़ेंगे (0-10 की स्पीड ज्यादा से ज्यादा)
6 - बाइक के टायर की गुड्डी (डिजाईन) का बड़ा महत्व है। 


सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

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सच पास विडियो :


मोटे अंगूर के जैसे 

सच पास की चोटी ,पीछे 

प्रकर्ति का अपना हिसाब 

आम नज़ारे , पुरे रासते 

बहुत ज्यादा मुश्किल सफर , लेकिन आनन्दमयी 

सही जगह थी 

चैंपियंस 


Monday, February 6, 2017

एक तूफानी सफर,पहला इंसान जिसने दिसम्बर महीने में सच पास पार किया,मोटरसाइकिल पर ( भाग -1 )

------------------ ज़िन्दगी ज़िंदा दिल जिया करते है , मुर्दा क्या खाक जिया करते है --------------


जूनून न हो इंसान में तो वो भीड़ में कही अपने आप को खो देता है। और किसी भी जूनून के पीछे सही जानकारी और सही तैयारी का होना बहुत जरूरी है नहीं हो वह जानलेवा बन जाता है।  ऐसे ही यह कहानी है मेरी सच पास यात्रा की।
शानदार झरने साथ। .सच पास से पहले 
अभी 23 दिन ही हुए थे हिमालय -गंगोत्री से केदारताल की यात्रा को पुरे किए हुए और ये यात्रा भी हमेशा की तरह अननं फांनन में तय हुई थी। तक़रीबन 50 दिन पहले एक बार सच पास जाने का जिक्र हुआ था दोस्तों के साथ लेकिन कुछ कारण वश ना जा पाया तो केदारताल हो आये। अब सच पास के बारे में निरंतर जानकारी थी और यह भी पता था की अक्टूबर महीने के आखिर में भी यहाँ पर जाना एक असंभव सा काम है और आधिकारिक तौर पर अक्टूबर में रोड भी बंद हो जाती है। लेकिन न जाने बार बार क्यों सच पास का जिक्र होता रहता था हम दोस्तों की किसमत में वहा का बुलावा था  इसीलिए। सच पास का कीड़ा इस कदर काठ गया दिमाग में की 28 नवम्बर को सब जानकारी निकल डाली सच पास की मौजूदा स्तिथि के बारे में और फिर मेने फ़ोन किया मेरे व्हाट्स  एप्प ग्रुप के दोस्त राकेश बिश्नोई को और हेल्लो बोलने के बाद सीधा ये ही पुछा " पंगा ले ले क्या ", इतना कहना था की राकेश जोर जोर से हँसने लगा और बोला "सन्नी भाई , जब सोच लिया है तो देखि जाएगी" बस फिर क्या था मेने कहा  "तैयारी करते है परसो निकल लेते है " राकेश ने पुछा साथ में कौन कौन है , लेकिन में कभी किसी को व्यक्तिगत तरीके से नहीं पूछता ,अपनी सोशल लिंक्स पर लिख देता हु अपने ट्रिप के बारे में , अगर कोई चलता है तो ठीक नहीं तो कोई फर्क कभी नहीं पड़ता , लेकिन अगर दोस्त साथ होते है तो यात्रा और ज्यादा मज़ेदार हो जाती है। अपने  ग्रुप से धीरेन्द्र भी साथ चलने को तैयार हो गए जो हापुड़(उ.प) से है।

2 दिन में मेने अपने सभी ग्रुप्स में सच पास दिसम्बर में करने के लिए जानकारी के लिए डाल दिया। बड़ी ही नकरात्मक प्रतिक्रिया मिली कुछ ने अच्छे सुझाव भी दिए पर  किसी भी ग्रुप में कोई बन्दा नहीं मिला जिसने कहा हो की  पास किया है दिसम्बर में या किसी को करते देखा हो । खैर में अपने 12 साल से काफी जगह घूम हु और इसमें केवल 3 बार ही बुलेट मोटरसाइकिल से गया हु और मेने अपनी पहले बुलेट 2003  में खऱीदी थी लेकिन 8  साल पहले उसे मोडिफाइ करवाई और गेराज में खड़ी  कर दी , शायद 7-8  साल में  350 km चलाइ है। इसीलिए में बुधवार 1 दिसम्बर  को अपने दोस्त मनीष के घर ग्रेटर नॉएडा से थंडरबर्ड मोटरसाइकिल ले आया और 1 दिसम्बर  की ही रात को यात्रा आरम्भ करने का तय हुआ और कुछ जरुरी सामान जैसे की आइस तोड़ने के लिए हतोड़े , एक मजबूत रस्सी,पंक्चर किट, पंप,आइस चैन टायर के लिए ,स्पार्क प्लग ,स्लीपिंग बैग ,टेंट,और खाने का सामान ले लिए ।वैसे आज ही मेरी अच्छी  खासी घिसाई हो गयी, पहले मेरठ से ग्रेटर नॉएडा फिर गुडगाँव और फिर वापस मेरठ यानि तक़रीबन 250 km की बाइक यात्रा हो गयी।

सुबह को धीरेन्द्र 3:30  बजे घर पर आया और दोनों ने सामान बाइक पर बांधे। स्लीपिंग बैग्स धीरेन्द्र की बाइक पर लाधे और अपना सारा सामान एक छोटे से लैपटॉप वाले बैग में किया और अपनी बाइक पर बांध लिया। सही 4 बजे हम दोनों चल दिए और राकेश अपने एक दोस्त के साथ हमे डलहौज़ी मिलने वाला था। मेरठ से करनाल रोड पर सुबह जबरदस्त कोहरा मिला लेकिन हम सही स्पीड से सावधानी से लेन बदलने वाली लाइन पर चलाते हुए सही 7:15  बजे करनाल पहुँच गए (108 km ). पहला  ब्रेक लिया पेट्रोल पंप पर और फिर वापस से सही स्पीड से चलते हुए बिना रुके चंडीगढ़ से पहले पेट्रोल पंप पर रुके जहा पर हवा डलवाई और धीरेन्द्र ने दो गिलास संतरा (माल्टा थी ) का जूस आर्डर कर दिया। बड़ा खट्टा था और जालिम ने 80 रूपये का गिलास दिया , सो अगर कोई भाई पिए ओ पहले पूछ लेना की खट्टा तो नहीं नहीं तो दोनों तरफ से लुटे जाओगे। दोनों बाइक हम लगभग  90 -110 की स्पीड के बीच में ही चला रहे थे। थोड़ी तेज़ थी लेकिन कोई खतरा नहीं था NH 1 के हिसाब से। धीरेन्द्र की बाइक में साइड के शीशे नहीं थे जिससे मुझे काफी जगह चिंता होती थी क्योकि हादसे कह कर नहीं होते। हाईवे पर आप को क्या पता की जब आप किसी वाहन को ओवरटेक कर रहे होते हो तो पीछे  से कौन कितनी स्पीड में आ रहा होता है " यहाँ सभी अपने को जहाज़ी मानते है , यह हिंदुस्तान है मेरी जान"
चलते रहना 

खैर दोनों साथ चलते रहे सावधानी से। बीच बीच में राकेश से भी बात होती रहती थी वह हमारे से 1:30 घंटा जल्दी पहुचने वाला था। अब हमे भूख लग रही थी और हम पठानकोट पार कर लिया और  और लगभग 2 बजे होंगे। . हमारा लक्ष्य 5-6 बजे का बैरागढ़ पहुचने का था इसिलए हमने खाने को ज्यादा तवज्जु नहीं दी और चलते रहे बीच में चम्बा के लिए निशान बना हुआ है हमने वह गलत मोड़ -मोड़ लिया और कच्चे पक्के रस्ते से होते हुए वापस डलहौज़ी वाले रोड पर चढ़ गए और लगभग 1 घंटा बर्बाद हो गया और शरीर टूटा सो अलग । तो जो भी भाई चम्बा या डलहौसी जाये इस मोड़ का ध्यान रखे और यहाँ पर एक मंदिर भी है जिसकी ही दिवार पर चम्बा जाने का निशान  बना हुआ है उलटे हाथ की तरफ। शायद दुनेरा निकले उस रोड से मैन रोड पर और  फिर दुनेरा पर पेट ने आगे जाने से माना कर दिया  और यहाँ 8 पैकेट जूस और गरमा गरम पकोड़ी खायी, मज़ा आ गया सही में बहुत ही जबरदस्त चटनी थी।
ये पुल जोड़ता है लिंक रोड को वापस डलहौज़ी हाईवे से 
राकेश भाई को काफी देर हो गयी थी इंतज़ार करते हुए और उनके शब्द फ़ोन पर इस बात को जाहिर कर रहे थे , लेकिन अभी एक और बार गलत मोड़ ले लिया डलहौज़ी से 6km पहले हम को सीधा चम्बा की तरफ जाना था और हम गूगल देवता के दिखाए रास्ते पर दोबारा भरोसा कर बैठे और डलहौज़ी की तरफ मोड़ लिया वह तो 3km बाद ही राकेश का फ़ोन आ गया और हम वापसी चम्बा की तरफ चल दिए. आखिर हम बनीखेत पर राकेश से मिले और वह अपने दोस्त योगी के साथ हमारा इंतज़ार कर रहे थे। योगी भाई एक गजब के शान्त स्वभाव के और हसमुख बन्दे है , कम ही इंसान है ऐसे दुनिया में।
धीरेन्द्र ,में और राकेश 
हम लगभग 15-20 मिनिट में चमेरा बांध पर पहुँच गए , बहुत ही गजब लगता है लगता है बांध के साथ साथ कार/बाइक चलने में। यहाँ पर चेक पोस्ट है जिसने हमसे हमारा प्रोग्राम पूछा और हमने बताया की हम बैरागढ़ जा रहे है और उसने रजिस्टर पर हमारी जानकारी लिखने के बाद जाने दिया। शाम के 5:00 बजे हम ने चमेरा बांध से आगे बढ़ना शुरू किया और अभी काफी रास्ता तय करना था। तक़रीबन 2 से 2:30 घन्टे का रास्ता और बचा था अंधेरा में काम से काम चलना पड़े इसके हिसाब से हम कही भी नहीं रुके और बीच में कोई भी जगह जहा से दो रास्ते निकलते थे किसी स्थानीय निवासी से बैरागढ़ के लिए पूछ कर आगे बढ़ते रहते।
चमेरा डैम के साथ बाइक चलाने का अलग ही शानदार अनुभव रहा 
खैर श्याम 7 बजे हम बैरागढ़ पहुँच गए और होटल ढूंढा  और दो कमरे लिए और सामान रखने के बाद खाने के लिए तुरंत ढाबा वाले ढूंढने लगे क्योकि जो वहा सबसे अच्छा होटल था उसने मना कर दिया की "खाने को कुछ नहीं क्योकि इस समय कोई भी टूरिस्ट नहीं आते और किसी और पर भी नहीं मिलेगा शायद"  ........ यार रहम कर सुबह से कुछ नहीं खाया। ....... इसीलिए बिना देर किए दो और ढाबे है बैरागढ़ में उनके पास पहुँच गए।  किस्मत , दोनों ने मना कर दिया की भाई कुछ नहीं है  बस दाल बची है वो भी एक प्लेट मिलेगी। ....... भगवान कहा हो मेरा पेट चिल्ला रहा है कुछ तो सुनो।  इतने में योगी भाई को देखता हु तो हाथ  में एक पन्नी में सिल्वर फॉयल में कुछ लेकर आ रहे ढ़ाबे वाले की तरफ मेने बताया की भाई बस एक प्लेट दाल है पुरे बैरागढ़ में हमारे लिए , वो खतरनाक वाली बच्चो वाली शरारती मुस्कराहट के साथ बोले "राकेश ने बोला था आलू के पराठे लाने के लिए सभी के लिए 3-3 पराठे है और दही भी " . शब्दो में नहीं बता सकता की कितना सकून मिला सुन कर।

मज़ा आ गया आलू परांठा और दही में। सुबह का प्लान बना की कल कोशिश होगी किल्लाड़ से अगली जगह जहा भी रुक सकते है वहा तक चलेंगे, क्योकि बैरागढ़ से 70km था किल्लाड़ बस । इसीलिए अभी ही चेक पोस्ट पर पर जाकर सच पास की जानकारी ली।  पुलिस वाले ने पहले तो मना कर दिया की बहुत ज्यादा रिस्क है बाइक पर , सड़क पर बर्फ जमी हुई है हर तरफ और खड़ी चढाई है और उत्तराई भी इसलिए परमिशन नहीं देगा। फिर हमने उन्हें हमारी तैयारी और सामान के बारे में बताया और अपने पुरानी यात्रा के फोटो दिखाए जिससे उन्हें यकींन हुआ की नौसिखिये नहीं है और पूरी सुरक्षा का सामान है। भगवान की दया हुई की उनको समझ आयी और उन्होंने हमारी जानकारी रात को ही अपने रजिस्टर में लिख ली जिससे सुबह का चक्कर ना रहे। अब हम भी संतुष्ट होकर अपने अपने कमरे में सोने के लिए वापस हो लिए। लेकिन कितने भी थके हुए हो इतनी जल्दी नींद नहीं आती , योगी और राकेश दोनों कमरे में आ गए और फिर क्या ताश का खेल शुरू।  हम सभी को ज्यादा खेल नहीं आते थे ताश के लेकिन फिर भी  भी ताश का कोई भी खेल हो ,सभी मजेदार होते है. ........ कब 11:30 बज गए पता ही नहीं लगा। योगी भाई हारे और कल जितने के इरादे का ऐलान करते हुए वापस अपने कमरे की तरफ चल दिए। अपने बिस्तर पर लम्बे हो कर सो गए। ........


हमे क्या पता था की चैन की नींद के बाद कल पूरा दिन ज़िन्दगी और मौत की जद्दो-जहत में पूरा पूरा मज़ा आने वाला है

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