जब आत्म चिंतन करोगे, तभी तो अपने अंदर की कमियों को ढूंढ पाओगे
होली पर हर वर्ष की तरह, तुंगनाथ महादेव जी अपने दर्शन देने के लिए बुला लेते है। एक या दो यात्रा तो वर्ष में यहाँ की हो ही जाती है ,लेकिन इस वर्ष तीन बार लिखी है ये मेरी अंतर आत्मा कह रही है। केदार बाबा का पूजन या फिर उस धरती पर जाना ही बड़े सौभाग्य की बात है। होली दहन तो सही परम्परा है लेकिन आज के युग में जो दुल्हैंडी खेलने का तरीका है वो मुझे अच्छा नहीं लगता, इसिलए पिछले पांच वर्षो से में केदार बाबा के पास आ जाता हु। इस साल तो कुछ संयोग ही ऐसा हो रहा है की जब भी यात्रा की तारीख तय करता हु कही न कही से बर्फ़बारी के बादल आ जाते है। इस यात्रा में मेरे साथ नागेन्द्र भाई जुड़ रहे थे और ये लेह होकर आये थे 2008 में और जब इनसे मिलकर ही लेह घूमने की प्रेरणा मिली। इनके साथ कही घूमने का संयोग पहली बार अब हुआ और ये भी 2008 के बाद कही घूमने नहीं गए, लेकिन सेहत एकदम फिट 6 फीट 2 इंच लंबा इंसान 90 किलो वजन , एक दम शानदार व्यहवार। इनके एक दोस्त राहुल भी इस यात्रा के लिए जुड़ गए और ये भी इनके साथ लेह यात्रा पर गए थे। राहुल भाई ब्राह्मण है और शायद इसीलिए थोड़े गोल मटोल इंसान है ।तुंगनाथ जी पांच केदार में से तीसरे केदार है। ये चंद्रशिला चोटी ( 4000 मीटर समुन्द्र तल से ) के नीचे इनका मंदिर है जो पांडवो द्वारा स्थापित किया गया था जो समुन्द्र तल से 3658 मीटर उचाई पर स्तिथ है। यहाँ हरिद्वार से ऋषिकेश -देवप्रयाग -कर्णप्रयाग-अगस्तमुनि-घाट-ऊखीमठ -चोपता तक सड़क मार्ग से जाया जाता है और चोपता से लगभग 4 किलोमीटर की पैदल की चढाई है जो लगभग ३-4 घंटे में आराम से पूरी हो जाती है , कुछ इंसान के स्वास्थ पर भी निर्भर करता है की वो कितना स्वस्थ है। यहाँ भी दर्शन/पूजन के लिए कपाट केदारनाथ धाम के साथ ही खुलते है ( मई में अक्षय त्रित्या के बाद ) और दिवाली के बाद देवउठावनी को बंद हो जाते है। कपाट बंद के समय मक्कू में तुंगनाथ जी का पूजन होता है जो लगभग 19 किलोमीटर है चोपता से।
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है।
6 मार्च को मौसम की चेतावनी को देखते हुए भी ये ही फैसला हुआ, कि चलेंगे जो होगा देखा जायेगा। शुक्रवार 10 मार्च की रात दोनों भाई घर आ गए। सही रात को 11:15 बजे हम सब अपना सामान रख चल दिए मेरठ से। आज जल्दी निकल गए तो फैसला ये हुआ की 1-2 घण्टे ऋषिकेश की चौकी पर सो लेंगे क्योकि वो सुबह 4:30 से पहले आगे जाने नहीं जाने देते। हरिद्वार भी 2 बजे आ गए जिससे स्नान करने का कोई मतलब नहीं था। ऋषिकेश में न जाने पुलिस वाले को क्या सूझी और उसने हमें सुबह 3:30 बजे आगे जाने दिया। हम जैसे ही व्यासी ( ऋषिकेश से 35 किलोमीटर ) पहुँचे ,पता नहीं कहा से बादल आये और धमा धम बारिश शुरू देवप्रयाग से पहले और बाद में काफी जगह भूस्लखन की, जिससे वहा बारिश के समय पर बहुत खतरा होता है। और अब तक के जीवन में पहली बार मेरी गाड़ी भी एक बड़े से पत्थर पर से उतरी जिसकी वजह दो बार हवा में उछली। तेज़ बारिश में नीचे उतारकर ये देखा की कही गाड़ी की तेल की टंकी या चैम्बर तो नहीं फटा। भगवान के आशीर्वाद से सब सही था। बारिश बहुत भयंकर थी और ऐसी बारिश में वो भी अँधेरे में गाड़ी चलाना थोड़ा झोखिम भरा होता है इसीलिए देवप्रयाग पार करने के कुछ किलोमीटर बाद गाड़ी साइड में लगा दी। दिन निकलते निकलते बारिश का भी कम प्रभाव हुआ और दोबारा से चल दिए तुंगनाथ जी की तरफ।
दोनों भाइयो ने सुबह 7 बजे श्रीनगर में चाय पि, इतने में मेने गाड़ी में डीजल भरवाया और बारिश भी बंद सी हो गयी थी। बारिश से ठंडक काफी बढ़ गयी थी और एक अलग ही खुशबू जो मिटटी से अति है उसकी वजह से सफर और सुहावना हो गया था। घर से आलू के पराठे और जैम नाश्ता लिए लाया था सो गाड़ी में चलते चलते नाश्ता किया और उम्मीद थी की 11 बजे से पहले ही चोपता तक पहुँच जायेंगे अगर रोड खुली मिली क्योकि परसो ये बताया था की बनिया कुंड (जो की 4 किलोमीटर पहले है चोपता से) तक सड़क पर बर्फ थी और आज रात की बारिश से साफ पता था की बर्फ काफी नीचे तक गिरी होगी। इस दौरान में अपने कुछ करीबी मित्रो से संपर्क में था जो अपने बड़े सारे ग्रुप के साथ तुंगनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहे थे। हम ने रुद्रप्रयाग पर किया और समझ गए की आगे क्या हालात होगी क्योकि हर तरफ बादल ही बादल थे। ऊखीमठ को जैसे ही पार किया आँखे खुली की खुली रह गयी हर तरफ जंगल में बर्फ ही बर्फ और बादल सड़क पर। ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा। 13 बार पहले भी बुलाया यहाँ बाबा ने लेकिन इतनी गजब की बर्फ़बारी नहीं देखी। सन 2013 में बनियाकुण्ड पर सड़क पर ही टेंट लगा कर कैंपिंग की थी क्योकि उस साल भी जबरदस्त बर्फ़बारी के कारण रोड बंद हो गयी थी।
खैर इस बार तो मामला अलग ही था और में समझ गया की तुंगनाथ जी तो जा ही नहीं पाएंगे। मक्कू बेंड से चोपता 12 किलोमीटर है और मक्कू बेंड से 3 किलोमीटर पहले ताला गाँव का शहिद द्वार आता है वहा तक बर्फ थी। ताला गाँव से मेने सुजान( तुंगनाथ जी परिसर में इसका होटल है ) को फ़ोन किया और सुजान को उनके घर से ले आये और वापस मक्कू बेंड की तरफ चल दिए। एक किलोमीटर चलते ही बर्फ ही बर्फ रोड पर खतरनाक हो गया चलना , कुछ सौ मीटर आगे ही दो गाड़ी खड़ी थी और टूरिस्ट हाथ हिला कर इशारा करने लगे की आगे जाने की जगह नहीं। किसी तरह उनकी गाड़ी एक तरफ लगायी और आगे बढ़ा। हिम्मत गाड़ी ने भी और किलोमीटर के पास चली। फिर बीच रोड में फस गयी। अब क्या करे ऊपर से वापस से बर्फ़बारी शुरू। हमारे पीछे पीछे लोकल टैक्सी वाली जीप और दो गाड़ी वाले भी आ गए। फैसला हुआ की जेसीबी वाले को बुलाया जाए और फिर मक्कू बेंड पर गाड़ी कड़ी कर दी जाये। तक़रीबन एक घंटे के बाद जब जेसीबी वाला नहीं आया तो मेने कार की डिग्गी से रस्सी निकाली और टायर पर चढाई जिससे में गाड़ी साइड में लगाऊ और पैदल ही जा सकु मक्कू बेंड पर क्योकि यहाँ रुकने का कोई सवाल ही नहीं। रस्सी लगायी लेकिन 10 सेकंड में ही जल कर टूट गयी। इतनी जबरदस्त ग्रशण को बर्दाश्त नहीं कर पायी। खैर जैसे तैसे दूसरे ड्राइवर की मदद से धक्का लगा कर गाड़ी साइड लगा दी जिससे कोई बड़ा वाहन भी आराम से निकल जाये।
सुजान को मक्कू बेंड पर महावीर होटल वाले के पास कमरे खुलवाने और खाना तैयार करवाने के लिए भेज दिया। हम भी अपना सामान और स्लीपिंग बैग साथ लेकर पैदल पैदल चल दिए मक्कू बेंड की तरफ, बर्फ भरी रोड पर। शाम होते होते जेसीबी वाले ने मक्कू बेंड तक रोड खोल दी और शाम को 5 बजे मेने भी अपनी गाड़ी मक्कू बेंड पर ला कर खड़ी कर दी। दोस्तों से पहली बार मिलने का काफी उत्साह था लेकिन फ़ोन का नेटवर्क काफी परेशान कर रहा था , फिर भी बीएसएनएल काफी ठीक नेटवर्क है घाटी में, शायद दोस्तों के पास नहीं था इसीलिए शाम से संपर्क नहीं हो पाया और वो भी बर्फ़बारी की जानकारी के बाद पीछे रास्ते में ही कही रुक गए।
अब रात का खाना खाने के बाद केवल ये ही बात तय हुई की राहुल भाई जहा तक चल सकेगा वहा तक चलेंगे और हम बनियाकुण्ड के आगे तक जहा तक जा सकेंगे, वहा तक जायेंगे। सुजान ने हमेशा की तरह लकड़ी इक्खटी की और आग सेकने के लिए तीनो की कुर्सी लगा दी। आग सेकते-सेकते वापस से बर्फ़बारी शुरू हो गयी और हमने भी सामने खड़ी गाड़ी पर अपना तापमान नापने का यंत्र रख दिया , की सुबह देखेंगे की क्या हिसाब रहा।
कल की बर्फ की परेशानी से पूरी तरह परिचित होते हुए भी दिल को सकूँ था की इतना शानदार नज़ारा बहुत कम देखने को मिलते है। यहाँ तक भी आये ख़ुशी है, दुल्हेंडी के दिन मक्कू ( शीतकालीन समय में गद्दी स्थल - जब ऊपर कपाट बंद होते है तो मक्कू में तुंगनाथ बाबा का यही पूजन होता है ) में जल अर्पण कर वापस जायेंगे, हमेशा की तरह।
और फिर से इस रात मुझे खराटे की चुनोतियो का सामना करना पड़ा। दोनों की विडियो रिकॉर्ड करके सुबह दिखाई की किस कदर रात भर खर्राटे लेते रहे और में जगता रहा।
होली के दिन शानदार ,प्राचीन (पांडव द्वारा बनाया रास्ते ) रास्ते से कैसे चोपता और कुछ किलोमीटर तुंगनाथ जी तक कमर/घुटनो बर्फ में रास्ता बनाते हुए यात्रा की।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
Blogs in English: The Himalayan Blog - A Journey of Adventure
होली पर हर वर्ष की तरह, तुंगनाथ महादेव जी अपने दर्शन देने के लिए बुला लेते है। एक या दो यात्रा तो वर्ष में यहाँ की हो ही जाती है ,लेकिन इस वर्ष तीन बार लिखी है ये मेरी अंतर आत्मा कह रही है। केदार बाबा का पूजन या फिर उस धरती पर जाना ही बड़े सौभाग्य की बात है। होली दहन तो सही परम्परा है लेकिन आज के युग में जो दुल्हैंडी खेलने का तरीका है वो मुझे अच्छा नहीं लगता, इसिलए पिछले पांच वर्षो से में केदार बाबा के पास आ जाता हु। इस साल तो कुछ संयोग ही ऐसा हो रहा है की जब भी यात्रा की तारीख तय करता हु कही न कही से बर्फ़बारी के बादल आ जाते है। इस यात्रा में मेरे साथ नागेन्द्र भाई जुड़ रहे थे और ये लेह होकर आये थे 2008 में और जब इनसे मिलकर ही लेह घूमने की प्रेरणा मिली। इनके साथ कही घूमने का संयोग पहली बार अब हुआ और ये भी 2008 के बाद कही घूमने नहीं गए, लेकिन सेहत एकदम फिट 6 फीट 2 इंच लंबा इंसान 90 किलो वजन , एक दम शानदार व्यहवार। इनके एक दोस्त राहुल भी इस यात्रा के लिए जुड़ गए और ये भी इनके साथ लेह यात्रा पर गए थे। राहुल भाई ब्राह्मण है और शायद इसीलिए थोड़े गोल मटोल इंसान है ।तुंगनाथ जी पांच केदार में से तीसरे केदार है। ये चंद्रशिला चोटी ( 4000 मीटर समुन्द्र तल से ) के नीचे इनका मंदिर है जो पांडवो द्वारा स्थापित किया गया था जो समुन्द्र तल से 3658 मीटर उचाई पर स्तिथ है। यहाँ हरिद्वार से ऋषिकेश -देवप्रयाग -कर्णप्रयाग-अगस्तमुनि-घाट-ऊखीमठ -चोपता तक सड़क मार्ग से जाया जाता है और चोपता से लगभग 4 किलोमीटर की पैदल की चढाई है जो लगभग ३-4 घंटे में आराम से पूरी हो जाती है , कुछ इंसान के स्वास्थ पर भी निर्भर करता है की वो कितना स्वस्थ है। यहाँ भी दर्शन/पूजन के लिए कपाट केदारनाथ धाम के साथ ही खुलते है ( मई में अक्षय त्रित्या के बाद ) और दिवाली के बाद देवउठावनी को बंद हो जाते है। कपाट बंद के समय मक्कू में तुंगनाथ जी का पूजन होता है जो लगभग 19 किलोमीटर है चोपता से।
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मौसम विभाग की चेतावनी |
6 मार्च को मौसम की चेतावनी को देखते हुए भी ये ही फैसला हुआ, कि चलेंगे जो होगा देखा जायेगा। शुक्रवार 10 मार्च की रात दोनों भाई घर आ गए। सही रात को 11:15 बजे हम सब अपना सामान रख चल दिए मेरठ से। आज जल्दी निकल गए तो फैसला ये हुआ की 1-2 घण्टे ऋषिकेश की चौकी पर सो लेंगे क्योकि वो सुबह 4:30 से पहले आगे जाने नहीं जाने देते। हरिद्वार भी 2 बजे आ गए जिससे स्नान करने का कोई मतलब नहीं था। ऋषिकेश में न जाने पुलिस वाले को क्या सूझी और उसने हमें सुबह 3:30 बजे आगे जाने दिया। हम जैसे ही व्यासी ( ऋषिकेश से 35 किलोमीटर ) पहुँचे ,पता नहीं कहा से बादल आये और धमा धम बारिश शुरू देवप्रयाग से पहले और बाद में काफी जगह भूस्लखन की, जिससे वहा बारिश के समय पर बहुत खतरा होता है। और अब तक के जीवन में पहली बार मेरी गाड़ी भी एक बड़े से पत्थर पर से उतरी जिसकी वजह दो बार हवा में उछली। तेज़ बारिश में नीचे उतारकर ये देखा की कही गाड़ी की तेल की टंकी या चैम्बर तो नहीं फटा। भगवान के आशीर्वाद से सब सही था। बारिश बहुत भयंकर थी और ऐसी बारिश में वो भी अँधेरे में गाड़ी चलाना थोड़ा झोखिम भरा होता है इसीलिए देवप्रयाग पार करने के कुछ किलोमीटर बाद गाड़ी साइड में लगा दी। दिन निकलते निकलते बारिश का भी कम प्रभाव हुआ और दोबारा से चल दिए तुंगनाथ जी की तरफ।
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श्रीनगर के आगे -सुबह का नज़ारा |
दोनों भाइयो ने सुबह 7 बजे श्रीनगर में चाय पि, इतने में मेने गाड़ी में डीजल भरवाया और बारिश भी बंद सी हो गयी थी। बारिश से ठंडक काफी बढ़ गयी थी और एक अलग ही खुशबू जो मिटटी से अति है उसकी वजह से सफर और सुहावना हो गया था। घर से आलू के पराठे और जैम नाश्ता लिए लाया था सो गाड़ी में चलते चलते नाश्ता किया और उम्मीद थी की 11 बजे से पहले ही चोपता तक पहुँच जायेंगे अगर रोड खुली मिली क्योकि परसो ये बताया था की बनिया कुंड (जो की 4 किलोमीटर पहले है चोपता से) तक सड़क पर बर्फ थी और आज रात की बारिश से साफ पता था की बर्फ काफी नीचे तक गिरी होगी। इस दौरान में अपने कुछ करीबी मित्रो से संपर्क में था जो अपने बड़े सारे ग्रुप के साथ तुंगनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहे थे। हम ने रुद्रप्रयाग पर किया और समझ गए की आगे क्या हालात होगी क्योकि हर तरफ बादल ही बादल थे। ऊखीमठ को जैसे ही पार किया आँखे खुली की खुली रह गयी हर तरफ जंगल में बर्फ ही बर्फ और बादल सड़क पर। ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा। 13 बार पहले भी बुलाया यहाँ बाबा ने लेकिन इतनी गजब की बर्फ़बारी नहीं देखी। सन 2013 में बनियाकुण्ड पर सड़क पर ही टेंट लगा कर कैंपिंग की थी क्योकि उस साल भी जबरदस्त बर्फ़बारी के कारण रोड बंद हो गयी थी।
बनिया कुण्ड पर 2013 में सड़क किनारे कैंपिंग करते हुए -रोड बंद |
खैर इस बार तो मामला अलग ही था और में समझ गया की तुंगनाथ जी तो जा ही नहीं पाएंगे। मक्कू बेंड से चोपता 12 किलोमीटर है और मक्कू बेंड से 3 किलोमीटर पहले ताला गाँव का शहिद द्वार आता है वहा तक बर्फ थी। ताला गाँव से मेने सुजान( तुंगनाथ जी परिसर में इसका होटल है ) को फ़ोन किया और सुजान को उनके घर से ले आये और वापस मक्कू बेंड की तरफ चल दिए। एक किलोमीटर चलते ही बर्फ ही बर्फ रोड पर खतरनाक हो गया चलना , कुछ सौ मीटर आगे ही दो गाड़ी खड़ी थी और टूरिस्ट हाथ हिला कर इशारा करने लगे की आगे जाने की जगह नहीं। किसी तरह उनकी गाड़ी एक तरफ लगायी और आगे बढ़ा। हिम्मत गाड़ी ने भी और किलोमीटर के पास चली। फिर बीच रोड में फस गयी। अब क्या करे ऊपर से वापस से बर्फ़बारी शुरू। हमारे पीछे पीछे लोकल टैक्सी वाली जीप और दो गाड़ी वाले भी आ गए। फैसला हुआ की जेसीबी वाले को बुलाया जाए और फिर मक्कू बेंड पर गाड़ी कड़ी कर दी जाये। तक़रीबन एक घंटे के बाद जब जेसीबी वाला नहीं आया तो मेने कार की डिग्गी से रस्सी निकाली और टायर पर चढाई जिससे में गाड़ी साइड में लगाऊ और पैदल ही जा सकु मक्कू बेंड पर क्योकि यहाँ रुकने का कोई सवाल ही नहीं। रस्सी लगायी लेकिन 10 सेकंड में ही जल कर टूट गयी। इतनी जबरदस्त ग्रशण को बर्दाश्त नहीं कर पायी। खैर जैसे तैसे दूसरे ड्राइवर की मदद से धक्का लगा कर गाड़ी साइड लगा दी जिससे कोई बड़ा वाहन भी आराम से निकल जाये।
शाम को बर्फ़बारी में गाड़ी के टायर से टूटी हुई रस्सी उतारते हुए |
सुजान को मक्कू बेंड पर महावीर होटल वाले के पास कमरे खुलवाने और खाना तैयार करवाने के लिए भेज दिया। हम भी अपना सामान और स्लीपिंग बैग साथ लेकर पैदल पैदल चल दिए मक्कू बेंड की तरफ, बर्फ भरी रोड पर। शाम होते होते जेसीबी वाले ने मक्कू बेंड तक रोड खोल दी और शाम को 5 बजे मेने भी अपनी गाड़ी मक्कू बेंड पर ला कर खड़ी कर दी। दोस्तों से पहली बार मिलने का काफी उत्साह था लेकिन फ़ोन का नेटवर्क काफी परेशान कर रहा था , फिर भी बीएसएनएल काफी ठीक नेटवर्क है घाटी में, शायद दोस्तों के पास नहीं था इसीलिए शाम से संपर्क नहीं हो पाया और वो भी बर्फ़बारी की जानकारी के बाद पीछे रास्ते में ही कही रुक गए।
मुझे क्या पता था की अगले दिन किसी और जेसीबी पर ऐसे सफर करने का रोमांच मिलेगा |
अब रात का खाना खाने के बाद केवल ये ही बात तय हुई की राहुल भाई जहा तक चल सकेगा वहा तक चलेंगे और हम बनियाकुण्ड के आगे तक जहा तक जा सकेंगे, वहा तक जायेंगे। सुजान ने हमेशा की तरह लकड़ी इक्खटी की और आग सेकने के लिए तीनो की कुर्सी लगा दी। आग सेकते-सेकते वापस से बर्फ़बारी शुरू हो गयी और हमने भी सामने खड़ी गाड़ी पर अपना तापमान नापने का यंत्र रख दिया , की सुबह देखेंगे की क्या हिसाब रहा।
बर्फ़बारी का शुरूवाती दौर |
कल की बर्फ की परेशानी से पूरी तरह परिचित होते हुए भी दिल को सकूँ था की इतना शानदार नज़ारा बहुत कम देखने को मिलते है। यहाँ तक भी आये ख़ुशी है, दुल्हेंडी के दिन मक्कू ( शीतकालीन समय में गद्दी स्थल - जब ऊपर कपाट बंद होते है तो मक्कू में तुंगनाथ बाबा का यही पूजन होता है ) में जल अर्पण कर वापस जायेंगे, हमेशा की तरह।
और फिर से इस रात मुझे खराटे की चुनोतियो का सामना करना पड़ा। दोनों की विडियो रिकॉर्ड करके सुबह दिखाई की किस कदर रात भर खर्राटे लेते रहे और में जगता रहा।
होली के दिन शानदार ,प्राचीन (पांडव द्वारा बनाया रास्ते ) रास्ते से कैसे चोपता और कुछ किलोमीटर तुंगनाथ जी तक कमर/घुटनो बर्फ में रास्ता बनाते हुए यात्रा की।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
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कुछ फोटो यात्रा वर्णन के दौरान से
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इस बार कुछ नया सीखा राहुल और नागेन्द्र भाई से -- शानदार फोटो मक्कू बेंड |
शानदार पल मक्कू बेंड से |
बर्फानी शॉट -- उड़ती हुई बर्फ |
जादुई लाल टॉर्च - फोटो में इसको इस्तेमाल किया |
सुबह मक्कू बेंड का नज़ारा -- यहाँ से चढाई शुरू की होली के दिन --रोड पर ३-४ फुट तक बर्फ थी |
इंतज़ार करते हुए जेसीबी का --बर्फ हटाने के लिए |
सुबह कुछ ऐसा मिला तापमान यंत्र और गाड़ी की छत |
राहुल ने लिया ये फोटो |
आईफोन 7 + में कैमरा क्वालिटी सबसे अलग है |
रहोडोडेनड्रोन फूल - उत्तराखंड का राज्य फूल --पूरी घाटी भरी हुई थी |
दुलहंडी वाले दिन -- में , नागेन्द्र भाई और राहुल भाई --और पीछे शानदार श्रृंखला साथ में चौखम्बा |
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जब तैयारी सही हो तो आप ज्यादा परेशां नहीं होते -- गूगल देवता की जय |
काफी चुनोतीपूर्ण यात्रा बहुत ही बढ़िया सन्नी भाई
ReplyDeleteजी हाँ अनिल भाई चुनोती थी लेकिन परमात्मा सदेव साथ होते है इसीलिए यात्रा पूर्ण हो जाती है
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteशानदार शुरूआत भाई जी
ReplyDeleteधन्यवाद अनिल भाई .. उम्मीद है अगला भाग और ज़्यादा पसंद आएगा
Deleteशानदार यात्रा और बिलकुल सजीव वर्णन ..
ReplyDeleteधन्यवाद नटवर भाई .. उम्मीद है दूसरा भाग भी पसंद आएगा
ReplyDeleteबहुत बढ़िया वर्णन ,हमारे पहुँचने तक तो फिर भी काफी हद तक कम हो गयी थी इस हिसाब से तो ?आश्चर्यजनक नज़ारा रहा होगा |
ReplyDeleteSujan Singh Rana naam hai na inka?
ReplyDeleteFebruary me mai apne dosto ke sath gaya tha tab inhone hi hame Ukhimath me receive kiya tha. Ye Makku ke rahne wale hain. Ache insan hain.
Photo bahut ache hai aur yatra varnan jabardasti.