Thursday, March 16, 2017

भगवान गणेश जी का जन्म स्थल डोडीताल यात्रा वृतांत और तेंदुए का डर ( भाग-2 )

              जो चाहा वो मिल जाना सफलता है, जो मिला उसको चाहना प्रसन्ता है

डोडीताल में माँ के मंदिर के आंगन में सोने का सोभाग्य मिलना इस बात को बताता है की कृपा है माँ की और गणेश जी की। जो होता है अच्छा ही होता है। रात को खाना खाते वक़्त काफी तेज़ आवाज़ आयी थी उसका डर जरूर था क्योकि में जानता हु की जंगली जानवर कितने ज्यादा खतरनाक होते है अपने इलाके को लेकर। बेयर ग्रील्स ने डिस्कवरी चैनल पर इतना तो सिखाया ही है। रात को ठण्ड का अभ्यास 8 बजे ही हो गया था, इसीलिए मंदिर के आंगन में जो खिड़किया थी उनको अच्छे से बंद किया , जितनी भी हो सकी। एक सकुन था की आंगन का फर्श लकड़ी का था जिससे ठण्ड और गर्मी का प्रभाव कम होता है। 

यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। 

फर्श पर मैट बिछाया और अपनी गरम चादर और स्लीपिंग बैग का फ्लीस ( गरम कपडा अंदर होता है जो और ज्यादा गरम रखता है ) नरेंद्र को दे दिया जिससे दोनों को ज्यादा तकलीफ ना हो । पराठे और जैम से दोनों भाई का पेट भर गया था और 10 पराठे सुबह  रख लिए जिससे सुबह हम दोनों और कुत्ते को भी खिला सके क्योकि अपने से पहले साथ वाले को खिलाना चाहिए चाहे वो कोई भी और कैसा भी हो। रात को नींद तो नहीं आयी ठण्ड के कारण और उस सर-सराहट के कारण भी। जैसे तैसे सुबह हुई और 6:30 बजे हम दोनों ने सामान को बैग में रख पहले उस आवाज़  का निरक्षण करने निकल लिए। सुबह की ठण्ड हड्डी में  रही थी। ऊपर से जुते गीले थे और बर्फ से होकर उस घंटना स्थल को ढूंढना ,सही में हौसला चाहिए। 
सुबह का नज़ारा 
दोनों ने झील के चक्कर लगाते हुए जंगल में ढूंढना शुरू किया और कभी रास्ते पर ढूंढते तभी एक दम से नरेंद्र बोला भाई जी खून। में भी थोड़ा हैरान हुआ और देखा की किसी जानवर का खून और बाल थे रास्ते पर ,मुश्किल से 50 मीटर ही होगा मंदिर से। मतलब समझते देर ना लगी की रात को शिकार हुआ है यहाँ और वो आवाज़ इस बेचारे जानवर की आखरी आवाज़ थी। अब मेरे कान तो आवाज़ नरेंद्र की सुन रहे थे लेकिन में केवल जंगल में देख रहा था की कही तेंदुए भाई हमे ही देख रहे हो और पलक झपकते ही नाश्ते की तैयारी शुरू कर दे। भाड़ में गयी सब बात जल्दी से 10 सेकंड की विडियो रिकॉर्ड की और भाग लिए वापस मंदिर की तरफ क्योकि उस तेंदुए का पेट भरा हुआ है लेकिन कोई और भी तो भूका हो सकता है। 
सुबह ६:३० बजे -.0 2 डिग्री 
तेज़ आये और सही 6:50 पर बैग लेकर चल दिए। बहुत ही ज्यादा शानदार नज़ारा था सुबह सूर्य उदय का दायरा टॉप पर बादल और सूरज की किरणे अलग ही शानदार नज़ारे दे रही थी।
सुबह का शानदार नज़ारा 
सही 8:50 पर धारकोट पुहँच कर पराठे निकाले और तीनो ने  नाश्ता किया। अब कुछ बेर और संतरे का स्वाद भी लिया क्योकि ये आपातकाल के लिए रखे थे लेकिन अब कुछ ऐसा नहीं होने वाला था तो क्यों वजन बढ़ाया जाये। तक़रीबन 15 मिनट में कुछ फोटो और विडियो लेने के बाद यहाँ से चले और छतरी से खड़ा शॉर्टकट ले लिए नीचे की और क्योकि अब सास नहीं फूलने वाली थी। लगभग 1 घंटे 20 मिनट में धारकोट से अगोडा आ गए और यहाँ से नरेंद्र और मेरी राहे अलग हुई अभी के लिए ,और मनु का घर रोड पर होने के कारण उसने मेरे को आते हुए देख लिया और गांव के गेट पर मेरा इंतज़ार करने लगा। उसका कोई परिचित नीचे संगम चट्टी पर आ रहे थे तो उनसे मिलने उसे जाना था और इसीलिए वो भी साथ हो लिया। कमाल की बात ये है की मेने सही दो घंटे पैतीस ( 2:35 )मिनट में ये 22 किलोमीटर का सफर कर लिया।
धारकोट से दयारा बुग्याल सामने 
जैसे ही में नीचे आया वहा पर ढाबे वाले संग एक भाई और थे जो काफी हैरान हुए मेरी गति को देख क्योकि में 11:25 पर नीचे आ गया और इसका मतलब था की में काफी स्वस्थ हु अभी और ऊपर से कंधे पर ठीक ठाक वजन था। खैर एक छोटे से आराम के बाद यहाँ से 11:55 पर वापस मुनेरि बांध की तरफ चल दिया क्योकि गंगा जल लेना था। अब में मुनेरि बांध के आगे सैन्झ से पहले एक जगह है जहा पर काफी सारे सरकारी ट्रक खड़े होते है और नीचे से रेत /रोड़ी का काम करते है। वही से में नीचे नदी के पास गाड़ी उतारकर स्नान करकर गंगा जल लेता था लेकिन इस बार उस रास्ते पर तार लगा दिए जिससे नीचे कोई गाड़ी न जा सके। उस रास्ते के सामने एक दुकान भी है मेने उनसे पूछा तो बताया वापस 200 मीटर बाद रास्ता है लेकिन वो ट्रक वाले इस्तेमाल करते है और काफी खड़ी चढ़ाई है। भाई और कोई रास्ता न था इसीलिए अपना डिजायर गाड़ी को पुचकार के नीचे उत्तर दिया क्योकि स्कार्पियो या क्ष यू वी तो नहीं थी की ताकतवर है लेकिन इसने भी कभी धोका नहीं दिया।
सभी की  लिए बोर्ड 
कमाल है, ऊपर से जल मिटटी भरा था इसका मतलब था की ऊपर बारिश हो रही थी और यहाँ गर्मी में हालात ख़राब थी। खैर किसी तरह किनारे पर नाहा कर जल भरा कनियो में और चला वापिस कार की तरफ। धीरे धीरे गंगा जल कार में रखने के बाद वापस चल दिया। दूसरी बारी में बहुत जोर लगाने के बाद जैसे तैसे ऊपर सड़क तक गाड़ी आ गयी। लगभग 1 बजे मेरठ की तरफ चल दिया । रास्ते में के एक भाई से मुलाकात होनी थी क्योकि जब भी वो फेसबुक पर वो मेरे फोटो देखते तो बोलते की बिना मिले चले गए। लेकिन संयोग वश मेने जब फ़ोन किया इस बार तो पता लगा की वो भी रास्ते में ही है कही ,लेकिन मुलाकात न हो पायी। खैर दिन का पहले खाना कालियासोड़ में खाया और हमेशा की तरह मिर्च बहुत ज्यादा लगी क्योकि में बिलकुल भी मिर्च नहीं खाता ।
यहाँ से जल लिया 
शाम 7 बजे ऋषिकेश आ गया और उसके बाद जो हालात ख़राब की ट्रैफिक ने हर तरफ जाम ही जाम, मन नहीं किया घर जाने का और में हरिद्वार/कनखल में गुरुदेव जी के नीलखण्ठ आश्रम पर ही रुक गया और अगले दिन सुबह को आराम से नाश्ता करके, फिर घर पर गया।
कनखल में  आश्रम  फोटो 
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।

सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

Youtube channel link: Vikas Malik – YouTube

पहला भाग पढ़ने के लिए :Alive to Explore: भगवान गणेश जी का जन्म स्थल डोडीताल यात्रा वृतांत और तेंदुए का डर ( भाग-1 )

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क्या दिल के आकर का पत्थर दिखा झील में 

एक एंगल ये भी मंदिर संग
रास्ते में सुन्दर नज़ारा 



कही कही थोड़ी बर्फ थी इस साल 

कैमरा के लिए अगोडा के बाद 

उत्तरकाशी के बाद संगम चट्टी से पहले 

कभी इस टंकी में पानी आता था -धारकोट के बाद 


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