26 जनवरी को लाहौल स्पिति की तरफ बर्फबारी का सामना हौसले और तैयारी से कैसे किया ( भाग-3 )
घूमने जाओ लेकिन कही भी गन्दगी मत फेलाओ ,ना व्यवहार से ,ना किसी सामान से
सुबह का शानदार नज़ारा और शायद थोड़ी ज्यादा ही ठंड थी। मज़े की बात ये थी की हमे आज पहली बार जालोड़ी जोत पास जाने का मौका मिलेगा और वो भी जनवरी में , कभी सोचा नहीं था की ऐसा भी पल आएगा और शायद ये ही घुमकड़ी का फायदा है। ख़ुशी कब कहा से आ जाये पता ही नहीं लगता। सुबह 6 बजे खानु/विजय का फ़ोन आ गया की जग जाइये और तैयार हो जाइये क्योकि 8:15 बजे हम जलोड़ी पास के लिए चलेंगे। ये दोनों लड़के बहुत ही अच्छे व्यवहार के थे और व्यवहार से ही सब कुछ है। हम भी नाहा कर तैयार हो गए और सामान कमरे में ही छोड़ दिया और ताला मिला नहीं सो ताला लगाया भी नहीं। में सीधा गाड़ी के पास गया क्योकि 8 बज गए थे और मुझे तजुर्बा था की अगर समय से वापस नहीं आए तो वापसी में ज्यादा लेट हो जायेंगे शिमला पहुँचने में।
सुबह सुबह टायर पंक्चर जालिम इस बार तो बिलकुल भी हवा नहीं थी टायर में। सोचा की पुरे रास्ते परेशान करेगा पंक्चर सही कर लेते है। मेने जैक निकाला इतने में खानु मैगी और पराठे ले आया , लेकिन "परांठे बाद में खाऊंगा पहले इसी पंक्चर को निपटा लेता हु।" टायर के नट लिए पाना लगाया खुले ही ना , पहले मेने जान लगायी फिर खानु ने लेकिन सब बेकार। पानी डाल कर देखा की कही पंचर मिल जाये और ऐसे ही बिना टायर खोले पंचर निकाल ले लेकिन वो भी बेकार। सुबह सुबह ठण्ड में हाथ की ऐसी कम तैसी हो गयी। खैर हवा भर दी पंप से और चलते वक़्त गेस्ट हाउस का रखवाला बोला की साहब मेरे को भी ले चलो में नहीं गया इतनी बर्फ में जलोड़ी पास। मेने देखा पंकज की तरफ और मुसकुराहट के साथ ही समझ गया की 6 किलोमीटर ही तो जाना है एडजस्ट कर लेंगे क्या फर्क पड़ता है।
जलोड़ी पास की तरफ जाते हुए
चल दिए जलोड़ी पास की तरफ सही 8:30 बजे। .ठण्ड वास्तिवकता में काफी ज्यादा थी, जब बात कर रहे थे मुँह से भाप निकल रही थी । लगभग 2.5 किलोमीटर ही चले होंगे बड़ी ही मुश्किल से गाड़ी ने आगे जाने से मना कर दिया। अब वक़्त था स्नो चैन निकल कर उन्हें इस्तेमाल करने का। बहुत ही आसान है स्नो चैन को टायर पर चढ़ाना लेकिन गाड़ी चढ़ाई पर और ऊपर से बर्फ में और भयंकर ठण्ड , जैसे तैसे कर के हमने जल्दबाज़ी में स्नो चैन चढ़ा दी और हाथ ने जवाब दे दिया था ठण्ड के मारे। जब जल्बाजी में सब काम करते है तो गलती होना लाजमी है और वो गलती इस बार ये हुई की वेल्डिंग वाली स्नो चैन के जोड़े में से एक चैन आगे के टायर पर चढ़ा दी। जब चैन लगायी और गाड़ी चलानी शुरू की मज़ा आ गया मस्त चढाई को भी बड़े ही आराम से चढ़ रही थी ,लेकिन कुछ ही दूर चलने के बाद वेल्डिंग वाली चैन टूट गयी। इतनी जदोजहद से बनायीं थी चैन और एक छोटी सी लापरवाही से गड़बड़ हो गयी। अब हिम्मत नहीं थी इतनी ठण्ड में दोबारा कोशिश करने की इसीलिए 4 किलोमीटर पैदल चलने का फैसला लिया। ऊपर वाला जो करता है अच्छा ही करता है। अगर हम पैदल न जाते तो शायद इतनी खूबसूरत प्रकर्ति के नज़ारे ध्यान से न देख पाते और में तो बिलकुल भी नही ,क्योकि में तो कार चलाने और रास्ते पर से ध्यान ही नहीं उठा सकता था ।
शानदार स्वर्ग का रास्ता
ज़िन्दगी में बर्फ के ढ़ेर कितने भी देख लो लेकिन जो मज़ा बर्फ से लदे पेड देखने में है वो कही भी नहीं आता। एक अलग ही स्वरूप लगता है प्रकर्ति का। इन 4 किलोमीटर में हम बस एक बार रुके जब 2 किलोमीटर वाला मील का पत्थर आया। कही नहीं रुके क्योकि किस्मत की बात है की एक बुलडोज़ररास्ते पर से बर्फ हटा रहा था और काफी रास्ता उसने साफ़ कर दिया था जिससे हमे चलने में जरा भी दिक्कत नहीं आ रही थी। इसीलिए कहा की भगवन जो भी करते है अच्छे के लिए ही करते है। फुटो में बर्फ थी हर जगह , बहुत ही सुन्दर जगह है जलोड़ी पास। बहुत शान्त थी क्योकि हमारे सिवाय केवल चिड़िया की चह-चाहट ही सुनाई दे रही थी।
वाह। . ज़िन्दगी में सकूँ देते है ऐसे नज़ारे
में और खानु पास पर पहुँच गए और दो ढाबे अभी भी वह पर खुले हुए थे। आराम से बेंच पर बेथ कर जूते उतारे और बर्फ में जाकर तस्सली से जयकारे लगते हुए आशीर्वाद लिए भगवान से। और क्या चाहिए था शान्ति में और भगवान।
जालोड़ी जोत पास पर
थोड़ी ही देर में बाकि सभी आ गए और एक ढाबे में चावल और दाल खायी। जालोड़ी पास से दो पर्यटक स्थल पास ही है।
1 - सर्लोसर लेक जो की मंदिर के पीछे से ही रास्ता जाता है , लगभग 5 किलोमीटर ही है बस।
2 - रघूपुर गढ़ , ये लगभग 3 किलोमीटर है जालोड़ी पास से।
बर्फ पिगला कर ही चाय मनाई और उसी के पानी से चावल उबाले , और इतनी ठण्ड में कहा से लाते बहता हुआ पानी। शानदार नज़ारा है यहाँ चारो तरफ और ऊपर से बर्फ से लदे हुए पेड़ो ने तो यात्रा ही सफल कर दी।
वापसी का टाइम हुआ तो मुड़ भी बदल गया और गाने सुनते हुए झूमते हुए वापिस चले ( इलाही मेरा जी आए ) नीचे हम सही 1 घंटे में 4 किलोमीटर आ गए और 1 बजे वापस खनाग गेस्ट हाउस में पहुँच गए और सामान गाड़ी में रखा और गेस्ट हाउस का किराया हमने इन्टरनेट पर देख लिया था इसिलए कोई चालकी जो भी चाही, नहीं चली और मात्र 380 रुपये दिए किराये के और 800 रुपये खानु और विजय को दिए।
वापसी के वक़्त का फोटो
फिर वहाँ से वापिस 2:30 बजे चले शानदार घाटी से होते हुए नारकंडा की तरफ और अब भी सड़क पर बर्फ कही कही थी कुफरी में जो गाड़ी को स्किट करा रही थी क्योकि उस एक इंच बर्फ इतनी काली हो गयी थी अब ऐसे लग रही थी जैसे टूटी हुई सड़क का हिस्सा है। किस्मत का साथ था की आज शिमला में जाम नहीं मिला और होटल राजमहल रेजीडेंसी में रुके जो टैक्सी स्टैंड के सामने ही है शिमला की शुरुवात में। कमरे में पता नहीं कौन सा माहौल देना चाहते थे हर तरफ शीशे ही शीशे थे और शिमला का पूरा नज़ारा दीखता था खिड़की से , किराया थोड़ा सा ज्यादा था लेकिन ठीक है 2800 रुपये ।
शीश महल
रात 8 बजे शिमला में पहेली बार रुकने का अफ़सोस नहीं हुआ क्योकि काफी काम भीड़ मिली ( ना जाने क्यों ) फिर मार्किट में सागर रत्न में सस्ता और स्वादिस्ट कहना खाया (थाली -200 रुपये ) और वापस आ कर मस्त सो गए तीनो भाई। कल वापसी घर की रवानगी और चंडीगढ़ रमन को छोड़ा और हम दोनों भी सही समय से घर आ गए अपनी एक और यादगार यात्रा कर के।
Too good
ReplyDeleteNiranjan
Thnaks Bro
Deleteउड़ता हुआ आदमी और भी शादी शुदा ......��
ReplyDeleteउड़ता हुआ आदमी और भी शादी शुदा ......��
ReplyDeleteHahahaha.. KUM HI DEKHNE KO MILTE HAI UDTE HUE SHADDI SHUDA INSAN
DeleteNice malik shab
ReplyDeleteऔर जब से आपने हिंदी में पोस्ट डालना सुरु किया हे तब से पढ़ने का मजा दुगना होगया हे
Aap ka naam nahi jan paya.. Lekin tariff aur utsah badhane ke liye bhaut bhaut dhanyavad
Deleteगज़ब पोस्ट और फोटो सन्नी भाई
ReplyDeleteshukriya sanjay bhai ji
DeleteGreat blog bhai, feeling that we are traveling with you..
ReplyDeleteDhanyavad Sangam Bhai ji
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