ज़िन्दगी हर दिन आपको नया तजुर्बा देती है , आप पर है की उसको जीवन में कितना सही इस्तेमाल करते हो
बहुत ही खूबसूरत दिखता है नाको गॉव बर्फ में ढका हुआ और सुबह काफी ठंडी थी ,रात को -11 तापमान था। सभी भाई सुबह की ठण्ड में 6 बजे नीले/लाल आसमान की फोटो लेने अपने अपने कैमरे/मोबाइल लेकर नीचे आ गए और शानदार फोटो लेने लगे। लगभग 8 बजे राकेश और धीरेन्द्र अपनी मोटरसाइकिल पर निकल लिए काज़ा के लिए और ताबो में मिलने का प्रोग्राम रखा। हम पांच भाई नाको में पराठे और कॉफ़ी का नाश्ता कर आगे बढ़ चले। मलिंग नाला एक बहुत ही प्रसिद्ध जगह पड़ती है नको से कुछ किलोमीटर बाद ही क्योकि यहाँ नाले का पानी सड़क पर जम जाता है और जिससे जनवरी-फरवरी में भयंकर दिक्कत अति है गाड़ी निकालने में क्योकि ठोस बर्फ पर गाड़ी फिसल कर खाई में गिरने के बहुत जयादा सम्भावना होती है। दूसरा मलिंग नाले के पहाड़ पर पानी की धारा जम जाती है जो की बहुत ही खूबसूरत लगती है।
मलिंग नाले से आगे चढ़ाई और उतराई है और उसके बाद ताबो गॉव आता है जो की लगभग 65 किलोमीटर है नाको से और बीच में बहुत अच्छे नज़ारे आते है। बीच में रुक रुक फोटो लेते रहे और एक जगह थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा, रास्ते से मशीन पत्थर हटा रही थी। ताबो में मुख्य रोड पर एक भी होटल नहीं खुला हुआ था और राकेश हमारा इंतज़ार अंदर रोड पर सरकारी गेस्ट हाउस के पास एक होटल में कर रहा था। नेटवर्क नहीं होने से बात नहीं हो पायी तो हम सीधे चल दिए धनकर मोनेस्ट्री की तरफ , ये सोच कर की राकेश भी काज़ा ही होगा। धनकर से पहले पुरे रास्ते में एक ही जगह ऐसी अति है जहा नदी सड़क से सट कर बहती है। अब हर तरफ घाटी बर्फ से ढकी हुई थी , नदी का मुहाना भी बर्फ से ढका हुआ था।
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है।
नदी से प्रार्थना कर हम उसमे गए और फिर गाड़ी भी घुमाई और इतने में राकेश और धीरेन्द्र भी आ गए , पता लगा की कहाँ गफलत हुई जिससे वो पीछे रह गए , इसीलिए सब प्लान ढंग से बना लेने चाहिए जिससे कोई असमंजस ना हो । यहाँ थोड़ी देर बर्फ पर नंगे पैर खड़े होने की प्रतियोगिता रखी जिसे "लेग्स ऑफ़ स्टील " नाम दिया , यानि " स्टील धातु के पैर " दरअसल इस के जरिये हम महसूस और आभास करना चाहते थे हमारे देशभक्त जो शहीद हुए हमारे देश की आज़ादी के लिए , अंग्रेज़ उन्हें किस तरह बर्फ की सिल्लियो पर रात भर अतय्चार करते थे और उन्होंने हमारे लिए सब दर्द सहे। सो उस दर्द का थोड़ा हिस्सा हम भी महसूस करे। उनके द्वारा दिए जीवन मूल्य हम अपने जीवन में अपना ही चुके है इसीलिए कोशिश रहती है कुछ अच्छा करने की अपने समाज के लिए।
ताबो से काज़ा मात्र 48 किलोमीटर है लेकिन रास्ता काफी कच्चा है तो समय काफी लगता है। काज़ा 2 बजे पहुँच और शहर लगभग बिलकुल बंद, खाने के भी वांदे। यहाँ से सीधे किब्बर गॉव के लिए निकल लिए ये सोच कर की वापस आ कर कुछ खाएंगे क्योकि रास्ते का भरोसा नहीं कितनी बर्फ मिले, क्योकि इधर से भारत सीमा का ये आखरी गॉव है। हर तरफ शानदार बर्फ ही बर्फ। सफेद रंग था बस हर तरफ। नीला आसमान और सफ़ेद रंग गजब ही नज़ारा। इससे अच्छा नज़ारा पहाड़ पर बस रंग बिरंगे फूल ही बिखेर सकते है। सड़क के दोनों तरफ गजब की बर्फ थी और हम जब किब्बर से मात्र 2 किलोमीटर दूर थे जब सड़क के दोनों तरफ बर्फ की दीवार थी। पहले तो देख लगा की मामला गंभीर है दिक्कत होगी लेकिन गाड़ी निकल जाएगी क्योकि सड़क पर टायर के निशान थे और गाड़ी के रगड़ने के निशान भी थे बर्फ की दीवार पर। पहला गियर लगाया और जैसे ही बीच में पहुंचे दीवार में गाड़ी दोनों तरफ फस गयी, साइड के शीशे बर्फ में रगड़ कर बंद हो गए , गाड़ी की बर्फ पर रगड़ने की आवाज़ आयी , मेने कहा "जरा शीशा नीचे उतरो और बताओ है क्या गुंजाईश"। नकुल और अनिल बोले भाई "गाड़ी फस गयी है आवाज़ आ रही हवा निकलने की टायर में से। मेने बस ये ही कहा " क्या बात कर रहे हो "
गाड़ी वापस ली उतर कर देखा पिछले टायर फट गया , अगले टायर में गहरा कट लग गया और साथ में पंक्चर हो गया। भगवान ये क्या हो गया , खैर कोई नहीं जल्दी-जल्दी यहाँ से गाड़ी आगे लेकर जानी है क्योकि ऊपर पहाड़ से पत्थर गिर सकते है जो जान और माल दोनों के लिए भयंकर खतरा है। गाड़ी से पाना निकाला और बोल्ट खोलने लगे , ये क्या बोल्ट ही नहीं खुले , एक भी बोल्ट टस से मस नहीं हुआ। पाना मुड़ गया पत्थर से पीटा थोड़ा सा भी सीधा नहीं हुआ ,पत्थर हाथ में जयादा चोट मार रहा था। फिर और दिमाग ख़राब हो गया। सब परेशान हो गए , बोल्ट नहीं खुलेगा तो काम कैसे चलेगा, ३:३० बज गए और शाम जल्द ही हो जाएगी और ऊपर ठंडी हवा जान ले रही थी इन सब स्तिथि में दो टायर ख़राब हो गए एक साथ जालिम ,इसकी तैयारी तो नहीं की थी क्योकि ऐसा कभी जीवन में ना हुआ, ना ही सोचा था और ना ही किसी के साथ होता देखा/सुना/पढ़ा ।
शिमला मुख्य शहर और वो लगभग 400 किलोमीटर दूर और काज़ा बिलकुल बंद था।मेने जतिन और करण को नीचे की मोनेस्ट्री की तरफ भेजा और कहा की कोई भी टाटा सुमो गाड़ी वाले को स्तिथि बता कर उसका पाना ले आओ , इतने में मै कुछ और सोचता हु। राकेश को फ़ोन किया और किस्मत की वो काज़ा में ही था , उसको स्तिथि बताई और गोटी पाना और टायर पंक्चर में लगाने वाली बत्तिया लेकर आने के लिए बोला , क्योकि साधारण पाने के मुकाबले गोटी पाना जयादा मजबूत होता है क्योकि स्टील धातु का होता है। इतने में आराम से दिमाग को शांत कर अगले टायर का पंक्चर सही किया, कट में साफ़ धागे दिख रहे थे इसका मतलब कभी भी धोखा दे सकता था ये टायर। अब 2 घंटे होने को आये और राकेश और धीरेन्द्र पुरे क़ज़ा शहर में बत्ती और गोटी पाना ढूंढ रहे थे। मेने इतने टाइम में पिछले टायर में 7 बत्तियों( ट्यूबलेस टायर का पंक्चर इससे ही सही करते ) फटे हुए टायर बंद करने की कोशीश की क्योकि इंतज़ार ज्यादा नहीं कर सकता था कुछ तो समाधान ढूंढ़ना था यहाँ से निकलने का। ये 7 बत्तियों ने 14 का काम किया क्योकि मोड़ कर ही टायर के अंदर जाती है , पंप से हवा भरी टायर में और गाड़ी भी वापस मोड़ने के लिए २ फुट ही ज्यादा जगह थी गाड़ी की लम्बाई से। गाड़ी में तीनो बैठे और चल दिए वापस काज़ा की तरफ। जैसे ही टायर कट वाली जगह घूम कर ऊपर आता उसमे से तेज़ी से हवा निकलती और फुस फुस की आवाज़ होती। बाहर भयंकर ठंडी हवा उसपर अनिल और नकुल बार बार चेहरा बाहर निकाल कर देखते की कही टायर में से सारी हवा तो नहीं निकल गयी। अब हर 500 मीटर पर टायर में हवा भरनी पड़ रही थी लेकिन उस सुनसान जगह से वापसी शुरू हो गयी थी।
अंतिम भाग में : कैसे कैसे और परिस्थिति बिगड़ गयी और ऐसा काम हो गया अनजाने में की टायर का रिम कभी किसी पाने से नहीं खुल सकता ज़िंदगी भर। ऐसी परिस्थिति में कैसे अकल,मदद और हिम्मत दी भगवन ने जिससे घर वापस आ पाए।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
बहुत ही खूबसूरत दिखता है नाको गॉव बर्फ में ढका हुआ और सुबह काफी ठंडी थी ,रात को -11 तापमान था। सभी भाई सुबह की ठण्ड में 6 बजे नीले/लाल आसमान की फोटो लेने अपने अपने कैमरे/मोबाइल लेकर नीचे आ गए और शानदार फोटो लेने लगे। लगभग 8 बजे राकेश और धीरेन्द्र अपनी मोटरसाइकिल पर निकल लिए काज़ा के लिए और ताबो में मिलने का प्रोग्राम रखा। हम पांच भाई नाको में पराठे और कॉफ़ी का नाश्ता कर आगे बढ़ चले। मलिंग नाला एक बहुत ही प्रसिद्ध जगह पड़ती है नको से कुछ किलोमीटर बाद ही क्योकि यहाँ नाले का पानी सड़क पर जम जाता है और जिससे जनवरी-फरवरी में भयंकर दिक्कत अति है गाड़ी निकालने में क्योकि ठोस बर्फ पर गाड़ी फिसल कर खाई में गिरने के बहुत जयादा सम्भावना होती है। दूसरा मलिंग नाले के पहाड़ पर पानी की धारा जम जाती है जो की बहुत ही खूबसूरत लगती है।
नकुल ,धीरेन्द्र ,जतिन,मै ,अनिल,राकेश,कारण (बाए से दए ) नाको हेलिपैड पर सुबह |
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नदी में |
नदी से प्रार्थना कर हम उसमे गए और फिर गाड़ी भी घुमाई और इतने में राकेश और धीरेन्द्र भी आ गए , पता लगा की कहाँ गफलत हुई जिससे वो पीछे रह गए , इसीलिए सब प्लान ढंग से बना लेने चाहिए जिससे कोई असमंजस ना हो । यहाँ थोड़ी देर बर्फ पर नंगे पैर खड़े होने की प्रतियोगिता रखी जिसे "लेग्स ऑफ़ स्टील " नाम दिया , यानि " स्टील धातु के पैर " दरअसल इस के जरिये हम महसूस और आभास करना चाहते थे हमारे देशभक्त जो शहीद हुए हमारे देश की आज़ादी के लिए , अंग्रेज़ उन्हें किस तरह बर्फ की सिल्लियो पर रात भर अतय्चार करते थे और उन्होंने हमारे लिए सब दर्द सहे। सो उस दर्द का थोड़ा हिस्सा हम भी महसूस करे। उनके द्वारा दिए जीवन मूल्य हम अपने जीवन में अपना ही चुके है इसीलिए कोशिश रहती है कुछ अच्छा करने की अपने समाज के लिए।
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तीन विजेता - 7 मिनट बाद प्रियोगिता समाप्त की जिससे शरीर को कोई हानि ना हो |
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यही पर हुआ था कमाल |
शिमला मुख्य शहर और वो लगभग 400 किलोमीटर दूर और काज़ा बिलकुल बंद था।मेने जतिन और करण को नीचे की मोनेस्ट्री की तरफ भेजा और कहा की कोई भी टाटा सुमो गाड़ी वाले को स्तिथि बता कर उसका पाना ले आओ , इतने में मै कुछ और सोचता हु। राकेश को फ़ोन किया और किस्मत की वो काज़ा में ही था , उसको स्तिथि बताई और गोटी पाना और टायर पंक्चर में लगाने वाली बत्तिया लेकर आने के लिए बोला , क्योकि साधारण पाने के मुकाबले गोटी पाना जयादा मजबूत होता है क्योकि स्टील धातु का होता है। इतने में आराम से दिमाग को शांत कर अगले टायर का पंक्चर सही किया, कट में साफ़ धागे दिख रहे थे इसका मतलब कभी भी धोखा दे सकता था ये टायर। अब 2 घंटे होने को आये और राकेश और धीरेन्द्र पुरे क़ज़ा शहर में बत्ती और गोटी पाना ढूंढ रहे थे। मेने इतने टाइम में पिछले टायर में 7 बत्तियों( ट्यूबलेस टायर का पंक्चर इससे ही सही करते ) फटे हुए टायर बंद करने की कोशीश की क्योकि इंतज़ार ज्यादा नहीं कर सकता था कुछ तो समाधान ढूंढ़ना था यहाँ से निकलने का। ये 7 बत्तियों ने 14 का काम किया क्योकि मोड़ कर ही टायर के अंदर जाती है , पंप से हवा भरी टायर में और गाड़ी भी वापस मोड़ने के लिए २ फुट ही ज्यादा जगह थी गाड़ी की लम्बाई से। गाड़ी में तीनो बैठे और चल दिए वापस काज़ा की तरफ। जैसे ही टायर कट वाली जगह घूम कर ऊपर आता उसमे से तेज़ी से हवा निकलती और फुस फुस की आवाज़ होती। बाहर भयंकर ठंडी हवा उसपर अनिल और नकुल बार बार चेहरा बाहर निकाल कर देखते की कही टायर में से सारी हवा तो नहीं निकल गयी। अब हर 500 मीटर पर टायर में हवा भरनी पड़ रही थी लेकिन उस सुनसान जगह से वापसी शुरू हो गयी थी।
अंतिम भाग में : कैसे कैसे और परिस्थिति बिगड़ गयी और ऐसा काम हो गया अनजाने में की टायर का रिम कभी किसी पाने से नहीं खुल सकता ज़िंदगी भर। ऐसी परिस्थिति में कैसे अकल,मदद और हिम्मत दी भगवन ने जिससे घर वापस आ पाए।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
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पहला भाग पढ़ने के लिए :Alive to Explore: लाहौल और स्पिति- एक रोमांचक और कभी ना भुलाने वाली यात्रा ( भाग-1 )
पहला भाग पढ़ने के लिए :Alive to Explore: लाहौल और स्पिति- एक रोमांचक और कभी ना भुलाने वाली यात्रा ( भाग-1 )
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मलिंग नाला। काफी सही जमा हुआ था 28 मार्च को भी -फोटो :अनिल द्वारा |
क्लोज उप - नकुल ने फोटो ली |
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स्पीति घाटी शानदार है |
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धीरेन्द्र की बुलेट पर हाथ आजमा लिया - साच पास में भी यही बुलेट थी |
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अजीबो गरीब सी संरचना -मुझे तो ड्रैगन के मुख जैसा भी लगा |
काज़ा से पहले पावर प्लांट पर लोहे का पुल |
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धनकर मोनेस्टरी के आगे काफी खूबसूरत नज़ारे |
ऊपर वाली फोटो और ये एक ही जगह की है |
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स्तूपा -काज़ा की पहचान में से एक |
ग़ज़ब की रोमांचक यात्रा 👍
ReplyDeleteआपके साथ आपके साथियों के साहस और संयम की भी दाद देनी होगी ।
बढ़िया शानदार फोटो । रोमांचक यात्रा निकलनी मुश्किल है "दिल से"
Bilkul Bhai, Ek insan group me musibat ke waqt tabhi sayam me reh sakta , jab sabhi samjhdar ho aur apni apni jimmedari se kam karte ho aur sabse mehtvapurn kushmijaz ho. isiliye me groups (car/bike) me nahi jata .. more the people more the mess. Travel SOLO
DeleteSunny bhai aapka tayer fatneka ye anubhav apne bhai logonko jarur kam aayega.
ReplyDeleteDilse salute karata hu aapko or aapki team ko
Dhnayavad patil bhai ... Bilkul, next blog me sabhi details/contact dunga , kyoki mera irada sabhi ko guide aur help karna hai for different places .
Deleteदिमाग को संतुलन में रखके संकट से बाहर निकलना कारगर रहा।
ReplyDeleteJi Bilul, Aur koi tarika bhi nahi tha jisse mujhe kuch samadhan milta.
Deleteइस यात्रा पर तो काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा आपको लेकिन यह भी सच है की हर चीज का अपना अलग मजा है यह सब बातें याद आएंगे अपने जीवन में आगे
ReplyDeleteJi, Bilkul.. Yeh tajurba hamesha yaad rahega aur agee ki sabhi yatra ke liye sachet karne wala bhi.
Deleteटायर आखिर बर्फ से कटी या पत्थर से? बहुत भयंकर मुसीबत वाली घटना है जो भी हो। फिर भी आपने धैर्य रखा जो सराहनीय है।
ReplyDelete#घुमक्कड़ी दिल से
RD bhai barf me ek pathar fasa hua tha jisse ye sab hua. dhary ke sivay koi aur cheez thi bhi nahi jisse samadhan nikle.
Deleteहमेशा की तरह रोमांचक यात्रा।आपने पंचर पर गाड़ी चला दी थी शायद इसीलिए टायर नही खुल पाये।आगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
ReplyDeletenahi. puncture par to gadi 2 feet bhi nahi chalaiyi.. ye company me pressure machine se nut kholte aur band karte hai usi ke karan nut nahi khule .
Deleteक्या कहु ख़ूबसूरत स्पीति के लिए शब्द ही नहीं है....बहुत बढ़िया awsome
ReplyDeletedhanyavad Gandhi bhai, spiti hai hi itni khubsurat.
Deleteआपकी हिम्मत और सहनशीलता लाजवाब हैं
ReplyDelete।
Gunjan Ji, Dhanyavad
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ReplyDeleteghumne ki jagah