जब आपके साथ कोई यात्रा करता है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी होती है , किसी को छोड़ कर मत भागिए
ग्रतंग गली -नेलांग घाटी, फोटो सौजन्य : गूगल इमेज
अभी लाहौल स्पीति की यात्रा को मुश्किल से 14 दिन ही हुए थे और बहुत भयंकर परिस्थिति से निकलने के कारण मन कही घूमने जाने का नहीं था ,लेकिन 3 महीने पहले ही हमारे ग्रुप मीटिंग के लिए ये तारिक तय थी ।मिलने का कार्यक्रम चुड़धार महादेव का बना हुआ था लेकिन ताज़ा बर्फ़बारी की और रास्ता जयादा कठिन होने की वजह से सभी सहमति से चुड़धार का मना किया और फिर नेलांग घाटी का प्रस्ताव रखा। सभी आपस में मिलना और घूमना चाहते थे इसीलिए सभी तैयार हो गए। अभी नेलांग घाटी के बारे में बताता हु आप सभी को। नेलांग घाटी 1962 के युद्ध के बाद आम इंसान के लिए बंद कर दी गयी थी। ये उत्तरकाशी जिले में है और गंगोत्री जाते वक़्त भैरो घाटी के बाद उलटे हाथ पर पुलिस चौकी के पास से इसका रास्ता है। नेलांग घाटी से तिब्बत जाने का रास्ता है। ये रास्ता जयादा तर सामान की आवाजाही के लिए इस्तेमाल होता था जैसे रेशम ,नमक। लेकिन 1962 के हिन्द-चीन युद्ध की वजह से ये घाटी बंद कर दी गयी क्योकि तिब्बत तक चीन ने जबरन अपना अधिकार जमा लिया था और इसका एक मात्र कारण हमारी कमजोर राजनितिक सरकार थी। यहाँ पर एक लकड़ी का पुल है जो सामान ले जाने के लिए इस्तेमाल होता था जिसका नाम है ग्रतांग गली और न.आई.म यानि नेहरू इंस्टिट्यूट मोंटेनेरिंग को इसके मरमत का काम दिया गया है इस साल , जिससे आम आदमी के पर्यटन के हिसाब से शुरू की जा सके।
फोटो सौजन्य : गूगल इमेज
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है।
मई से लेकर नवम्बर तक ये रास्ता खुला रहता है। दिल्ली से हरिद्वार फिर उत्तरकाशी आना पड़ता है, जो 390 किलोमीटर है और फिर उत्तरकाशी से भैरो घाटी चौकी की दूरी 85 किलोमीटर है । नेलांग घाटी में जाने के लिए आपको उत्तरकाशी के उप प्रभागीय न्यायधीश और जंगल विभाग से आज्ञा लेनी पड़ती है तभी आपको भैरो घाटी की चौकी से आगे जाने की आज्ञा मिलती है। आज्ञा के लिए आप अब इंटरनेट से ऑनलाइन भी आवेदन सकते है लेकिन फिर भी आपको वहा के किसी टूर ऑपरेटर का सहारा लेना पड़ेगा क्योकि आवेदन में आपका पहचान पत्र और टूर ऑपरेटर की जानकारी जरुरी है।
उत्तरकाशी में कुछ टूर ऑपरेटर नेलांग या बाइक राइडिंग के नाम पर भयंकर लूट मचा रखी है। में इसकी सही कीमत जानता हु इसीलिए ऐसा बता पा रहा हु। आज्ञा के लिए आपको 150 रूपया जंगल विभाग और 500 रूपया शायद उप प्रभागीय न्यायधीश की राशि जमा करनी होती है , और वाहन की 400 रूपया। और ये लोग 7-8 हजार रूपया लुट रहे है 2 दिन रुकने, खाने और नेलांग घाटी घुमाने का एक आदमी से। जबकि 500-1000 रुपये का शानदार होटल में कमरा मिल जाता है। अगर इनको 2 हजार रूपया भी दे दे एक इंसान की आज्ञा का क्योकि घर उनको भी चलना है उनका ये ही व्यवसाय है , तो भी खाना , रहना और आज्ञा का मिला कर सब हिसाब लगाया ,औसतन ३ दिन का 3-4 हजार से ज्यादा खर्च नहीं आता। तो ये टूर ऑपरेटर से एक आदमी से 4 हजार रुपये की बचत कम से कम कर रहे है । लूट मचा रखी है अपना पन दिखा कर।
लकड़ी की सीढ़ी का रास्ता। फोटो सौजन्य : गूगल इमेज
मै एक ऐसा ऑपरेटर ढूंढ रहा हु जो जयादा कमाई के चक्कर में न हो इसीलिए जल्द ही आपके सामने सब जानकारी दूंगा जिससे आप सभी वहा घूम सके। एक उत्तरकाशी का टूर ऑपरेटर मेरे काफी दोस्त जानते है उसको और काफी दोस्तों के साथ भी जुड़ा हुआ है फेसबुक पर ,मेरे साथ भी फेसबुक पर है लेकिन वो भी जमकर लूट रहा है इसीलिए मेने उसको unfollow कर रखा है । अगर आप पांच जन हो तो उत्तरकाशी से नेलांग घाटी और वापस उत्तरकाशी आने का खर्चा 3-4 हजार हद से हद है टैक्सी समेत , और अगर कोई इससे ज्यादा आपसे ले रहा तो वो आपको जमकर लूट रहा है।
लाल देवता का मंदिर , फोटो सौजन्य : गूगल इमेज
मै 13 मई को गंगोत्री ,तपोवन की यात्रा पर जाने वाला हु तो आप सब को सब सही जानकारी दूंगा की क्या कैसे करे और वेबसाइट की सब जानकारी भी दूंगा अपनी यूट्यूब के माध्यम से और ब्लॉग के माध्यम से भी । नेलोग घाटी का ऑनलाइन आवेदन शुरू होना था इसीलिए मेने पहले ही जाने का मन बना लिया था। नेलांग घाटी एक ठंडा रेगिस्तान समान घाटी है जैसे की स्पीति घाटी या लेह लदाख। यहाँ 25 किलोमीटर तक ही पर्यटक को जाने की अनुमति है और रात में यहाँ रुकने की अनुमति नहीं है। 2015 में पर्यटन के लिए खोलने से उत्तरकाशी के निवासीयो के लिए काफी रोजगार बढ़ा है लेकिन हर पहलू के नुकसान भी है। ग्रतांग गली की लकड़ी के पुल के आलावा यहाँ एक लाल देवता का छोटा सा मंदिर भी बनाया हुआ है। यहाँ पर भोइतया जाती के लोग रहते थे जिन्हे लड़ाई के वक़्त अपना गाँव छोड़ कर जाना पड़ा और भैरो घाटी में विस्थापित होना पड़ा।
ये इतिहास और वो लकड़ी की सीढी जो पहाड़ के साथ साथ बनी हुई है , इन्होने ही प्रेरित किया घूमने के लिए । इसीलिए मेने अपने यात्रा चर्चा नामक व्हाट्स एप्प ग्रुप में चर्चा की और दिल्ली से संदीप भाई और अखिलेश आदर्शी , मेरठ से डॉक्टर अजय , पठानकोट से डॉक्टर अनुभव, मथुरा से नरेश भाई और अमित भाई के साथ 13 अप्रैल मध्य रात्रि मेरठ घर से यात्रा प्रस्थान होने का निर्णय हुआ । अनुभव भाई का रुड़की मिलने का प्रोग्राम था। ये एक यादगार यात्रा की शुरुवात है।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
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सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
मुफ्त में घूमने वाले घुम्मकड़ नहीं होते , ऐसे बेकार इंसान को महत्व ना दे , सपने देखो ,मेहनत से पैसे कमाओ फिर घूमो
हम किसी तरह से किब्बर से 3 किलोमीटर, की मोनेस्ट्री तक वापसी करने में सफल हुए। बीच में चार बार हवा भरी। अब गाड़िया दिखने लगी थी इसिलए उनको हाथ देना शुरू किया और एक एक करके 3 टाटा सूमो गाड़ी के पाने लिए और तीनो के पाने मुड़ गए लेकिन एक भी नट नहीं खुला। ठंडी हवा ने जान लेनी शुरू कर दी थी। काफी लोकल आदमी हमारी मदद के लिए रुक गए थे और इतने में राकेश भी काज़ा से नट के साइज का गोटी पाना ले कर आ गया। बता नहीं सकता कितनी खुशी हुई राकेश और गोटी पाने को देख कर। एक टैक्सी ड्राइवर ने जैसे ही गोटी लगायी और काफी ताकत लगाने के बाद पहला नट खुला तो जितने भी इंसान खड़े थे सभी ने ख़ुशी में शोर मचाया , लेकिन अगला कोई भी नट नहीं खुला ,और गोटी भी फट गयी इतनी ताकत लगायी। आखरी उम्मीद भी ध्वस्त। अब एक बुजुर्ग बोले की तुम एक पाइप लाओ नीचे गाँव से फिर पाने की लम्बाई बढ़ जाएगी शायद जब नट खुल जाये, क्योकि जब स्टील की गोटी भी फैट गयी तो अब मुश्किल है की बिना मशीन के टायर खुल पायेगा । राकेश की हिमालयन मोटरसाइकिल पर बैठ 5 मिनट में ही पानी के पाइप का टुकड़ा ले आये। लेकिन सब बेकार।
ये खतरनाक जगह ज़िन्दगी भर याद रहेगी
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। मेने पंक्चर की सभी बत्तिया टायर में घुसा दी , जिससे कुछ और देर तक हवा रुके औरहम कम से कम वापिस काज़ा तक तो पहुंचे।भगवान् ने सुनी और हम जैसे तैसे अँधेरा होते होते काज़ा में पंक्चर वाले की दुकान में पहुंच गए। हवा इतनी तेज़ थी की शरीर में आर पार निकल रही थी। पंक्चर वाले ने गोटी पाना लगाया और एक एक करके 2 नट और खोल दिए, 5 में से अब तीन नट खुल गए । इतने में राकेश बोला की कोई जाकर रात को रुकने का होटल देख आओ क्योकि रात में नहीं मिलेगा कोई भी । किसी की हिम्मत नहीं हुई ठण्ड में बाइक पर जाने की तो मेने कहा में जाता हु और ढूंढ़ता हु। मेरे को अकेला जाते देख राकेश बोला भाई में भी चलता हु। में भी बेफिक्र होकर चल दिया क्योकि नकुल वहा पर था और उसके पास भी XUV500 गाड़ी ही है तो हर पहलू समान ही है। पर मुझे क्या पता था की मुसीबत मुझे षडियंत्र के तहत दूर भेज रही थी। मेने मोटरसाइकिल को सीधा एकमात्र पेट्रोल पम्प पर ले लिया , क्योकि इनके पास पुरे शहर की जानकारी होती है। काका ने बताया की बस सरकारी सर्किट गेस्ट हाउस में जाओ सब व्यवस्था हो जाएगी। हम दोनों वहा गए और कुछ देर इंतज़ार के बाद वहा के रखवाले आये तो हमने उन्हें सब कुछ बताया और उन्होंने 3 कमरे हमे रुकने के लिए दे दिए। मेने नकुल से बात की तो नकुल ने मुझे वापस आने को मना कर दिया, क्योकि दोस्त है जिगरी , बोला "में तो बैठा हु तुम आओगे तो तुम भी ठण्ड में बैठोगे ,बस एक नट नहीं खुल रहा उसी का जुगाड़ कर रहे है "। रात के 9 बज गए और अब चिंता होनी शुरू हो गयी थी , 2-3 बार फ़ोन पर बात भी हुई लेकिन कुछ समझ नहीं आ रहा था की करवा क्या रहा है बस ये समझ आया की नट कटवा रहा है , कैसे ये नहीं समझ आया।
की मोनेस्टरी जाते वक़्त शानदार नज़ारा
अनिल और धीरेन्द्र भी 8 बजे बुलेट से होटल में आ गए थे तो मेरे को और चिंता होने लगी थी क्योकि मुसीबत में जितने इंसान एक साथ हो उतना हौसला बना रहता है। इसीलिए मुसीबत में अपनों को छोड़ कर आराम के लिए न जाये, चाहे आपका काम हो या न हो , क्योकि साथ निभाना उसी को कहते है।
काज़ा सर्किट हाउस से दोनों भाई की विदाई करते हुए
रात को भयंकर ठण्ड में 9:30 बजे नकुल,करण और जतिन गाड़ी को लेकर आये तो ऐसा लगा की काम सही हो गया। लेकिन जैसे ही में गाड़ी के पास गया और रिम देखा मेरे होश उड़ गए , ठण्ड लगनी बंद हो गयी और दिमाग को यकीन नहीं हो रहा था की ऐसा भी भयंकर काम हो सकता है। नट काटने की जगह नट को छील दिया था उस पंक्चर वाले ने और नट के आखिर में दो चूड़ी होती है जो रिम और चक्के के बीच में जाकर फस्ती है जिससे रिम टाइट हो जाता है और वो आखरी दो चूड़ी नट की कट ही नहीं सकती थी तो आखरी में पंक्चर वाले को जब कुछ समझ नहीं आया तो इनको वापस भेज दिया । ये तो ऐसा काम हो गया की शोरूम पर भी सही न हो। अब तो संभावना ही नहीं रही रिम खुलने की, क्योकि जब नट ही नहीं रहा तो पाना इसको खोलेगा कैसे । खैर एक मिस्त्री से राकेश की बात हुई थी और उसी ने उसको गोटी पाना दिलवाया था उसने कहा की आपकी किस्मत तेज़ है मेरा मैकेनिक अभी मनाली से वापस आ गया है सीजन की तैयारी करने के लिए इसीलिए सुबह जल्दी गाड़ी ले आना देखते है क्या हो सकता है।
दाय वाला नट छेनी से छील दिया बेवकूफ ने , न जाने क्या सोच कर
रात भर नींद नहीं आयी क्योकि मुझे पता था की हम अब कितनी भयंकर मुसीबत में फस गए है। जब नट ही नहीं रहा तो खुलेगा कैसे। खैर, सुबह 8 बजे राकेश और धीरेन्द्र को काज़ा से शिमला के लिए रवाना किया और में गाड़ी लेकर पंक्चर वाले के पास गया। उससे पूछा की किया क्या सोच कर ये काम किया , उसने तो भलाई सोची इसलिए अपने गुस्से और जबान पर काबू किया। उसने छेनी से नट को छील दिया और एलाय रिम पर भी हर तरफ निशान हो गए जिसके कारण। मिस्त्री 9:30 बजेआये और उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया , की ये किया कैसे और क्या सोच कर। मेरी हसीं और गुस्सा मिल चुके थे , सही में जो होता है कभी कभी सही ही होता है , तजुर्बा इससे ही मिलता है। किस्मत अच्छी है की पास में ही एक गाड़ी धोने की जगह है जिपर हमने गाड़ी लगायी क्योकि सीजन होता तो यहाँ पर खूब भीड़ होती है और जगह मिलने का सवाल ही नहीं होता। और फिर गाड़ी के नीचे से देखा की किया क्या जा सकता है। लगभग 4 घंटे और 3 बार अलग अलग तरीके के औज़ार मँगा कर हमने नीचे का पूरा हिस्सा ही खोल डाला। टायर के साथ ब्रेक असेंबली , चक्का , चिमटा सब साथ ही निकाल दिया। अब बारी थी इसके टायर को बदलने की। एलाय रिम में से टायर आराम से नहीं निकलता , फिर लगे 10 किलो का हतोड़ा बजाने जैसे ट्रक के टायर पर मारते है। लगभग 30 मिनट बाद चक्का अलग हो गया रिम से तो मैकेनिक को बोला की इसको फिट कर गाड़ी में जाकर, समय बचेगा में टायर बदलवाकर लाता हु। बहुत मेहनत के बाद टायर बदला और फिर लगभग 3 बजे ख़ुशी हुई की अब में वापस निकल सकता हु शिमला के लिए बस अगला टायर साथ न छोड़े, क्योकि उसमे भी कट गहरा था। एक ट्यूब डलवाई स्टेपनी टायर में और फिर सभी को उनकी इच्छा अनुसार रुपये दिए और जो गोटी फट गयी थी उसके भी दुगने रुपये दिए जिससे उन्हें बुरा न लगे और मैकेनिक भाई को देने के लिए बोला । बारी बारी से सभी का धन्यवाद कर वापस होटल में आया।मेरे चेरा पर थकान देख सभी महसूस की कैसे कैसे काम करवाया है। अभी आकर खड़ा ही हुआ था की इतने में एक इंसान गुस्से में आकर पूछता है की ये गाड़ी आपकी है , मेने कहा है , वो बोला की" आपके साथ वो बाइक वाला मेरे से गोटी पाना ले गया था उसने बोला था की शाम को लोटा देगा , अभी तक नहीं लौटाने आया इसीलिए में आया हु अपना काम छोड़ कर, मुझे मेरा सामान दो " गुस्से से तम तमा रहा था।
शानदार सफ़ेद स्पीति .. जयादा खतरनाक
यार सुबह से एक घुट पानी भी नसीब नहीं हुआ और भूख के मारे हाल बेहाल , उस पर से तुरंत ये एक और मुसीबत। संयम रखते हुए उसको बोला की भाई आपके औज़ार मैकेनिक को देकरआया हु और आपकी गोटी फट गयी उसकी कीमत भी दो गुणी दी है उनको। वो भाई ये सुनते ही तो और भड़क गया और बोलै "मुझे तो मेरे औज़ार जैसे दिए थे वैसे ही चाहिए " अब ये नया स्यापा कहा से आ गया। किसी तरह मैकेनिक के पास ले गया और वो तो टस से मस ना हो। बार बार एक ही बात कहे मुझे तो मेरी गोटी सही चाहिए। सौ बात समझाई लेकिन भाई नहीं माना मेरी विनति का कोई असर न देख 30 मिनट बाद मैकेनिक भाई ने अपने सेट में से उसको नयी गोटी दी तब उससे पीछा छूटा। ये मैकेनिक भाई की दुकान बिलकुल रोड पर है और जहा से मार्केट/बस स्टैंड के लिए उलटे हाथ से नीचे रास्ता जाता है वही पर कोने में इनकी दुकान है। दिमाग इस कदर थकान और परेशानी में था की फोटो या वीडियो बनाने का इतना दिमाग में नहीं आया।
नज़ारे अच्छे हो तो मुसीबत दिमाग को परेशान नहीं करती
बस यहाँ से वापस होटल में आये और सामान रख चल दिए। रास्ते में बहुत देर बाद अच्छी रोड अति है तो पूरी तेज़ी से कार चलायी जिसके कारण वो रास्ता छूट गया जहा से मलिंग नाले की चढाई शुरू होती है और आगे चलते रहे पुराने रास्ते पर। लगभग 1 किलोमीटर बाद भयंकर टुटा हुआ रास्ता शुरू हुआ जिस पर हम 4 किलोमीटर और आगे गए , गाड़ी का टायर 1-2 इंच ही बचता था खाई में जाने तक इतना संकरा रास्ता था , आगे रास्ता पत्थर गिरने की वजह से बंद था और पुरे रस्ते पर चट्टान के पत्थर ही थे। यहाँ से वापसी गाड़ी जैसे तैसे मोड़ी, वापस आये नहीं तो न जाने कौन सी भयंकर मुसीबत में फसते। अँधेरा हो गया था जब नाको पहुँचे। वापस से वो ही कमरे लिए और फिर रात को तारो की रौशनी ने सब थकान और मुसीबत के दौर को भुला दिया। ऐसा सुन्दर नज़ारा स्पीति में ही देखने को मिलता है। घने तारे तो बहुत बार देखता हु साल में हिमालय पर , लेकिन यहाँ की बात ही और है।
जबरदस्त तारा श्रंखला
सुबह सही 6 बजे पांचो भाई चल दिए दिल्ली की और और सही 18 घंटे में मेरठ घर आ गए थे यानि 10 बजे , या उससे भी पहले। दिल्ली से नाको एक दिन में 20 घंटे में ही पहुँच गए थे , सो इस हिसाब से वापसी भी ठीक थी। ये सफर मुसीबत के में काफी सीखा गया , 2 नए टायर और शोरूम में गाड़ी सही कराने का खर्च 48,000 आया, मतलब एक यात्रा का खर्च ज्यादा लग गया। शोरूम पर सही करता हु गाड़ी क्योकि सकून रहता है की काम और माल सही होता है, जिससे गाड़ी कही अचानक धोका नहीं देगी।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
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सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
ज़िन्दगी हर दिन आपको नया तजुर्बा देती है , आप पर है की उसको जीवन में कितना सही इस्तेमाल करते हो
बहुत ही खूबसूरत दिखता है नाको गॉव बर्फ में ढका हुआ और सुबह काफी ठंडी थी ,रात को -11 तापमान था। सभी भाई सुबह की ठण्ड में 6 बजे नीले/लाल आसमान की फोटो लेने अपने अपने कैमरे/मोबाइल लेकर नीचे आ गए और शानदार फोटो लेने लगे। लगभग 8 बजे राकेश और धीरेन्द्र अपनी मोटरसाइकिल पर निकल लिए काज़ा के लिए और ताबो में मिलने का प्रोग्राम रखा। हम पांच भाई नाको में पराठे और कॉफ़ी का नाश्ता कर आगे बढ़ चले। मलिंग नाला एक बहुत ही प्रसिद्ध जगह पड़ती है नको से कुछ किलोमीटर बाद ही क्योकि यहाँ नाले का पानी सड़क पर जम जाता है और जिससेजनवरी-फरवरी में भयंकर दिक्कत अति है गाड़ी निकालने में क्योकि ठोस बर्फ पर गाड़ी फिसल कर खाई में गिरने के बहुत जयादा सम्भावना होती है। दूसरा मलिंग नाले के पहाड़ पर पानी की धारा जम जाती है जो की बहुत ही खूबसूरत लगती है।
नकुल ,धीरेन्द्र ,जतिन,मै ,अनिल,राकेश,कारण (बाए से दए ) नाको हेलिपैड पर सुबह
मलिंग नाले से आगे चढ़ाई और उतराई है और उसके बाद ताबो गॉव आता है जो की लगभग 65 किलोमीटर है नाको से और बीच में बहुत अच्छे नज़ारे आते है। बीच में रुक रुक फोटो लेते रहे और एक जगह थोड़ा इंतज़ार करना पड़ा, रास्ते से मशीन पत्थर हटा रही थी। ताबो में मुख्य रोड पर एक भी होटल नहीं खुला हुआ था और राकेश हमारा इंतज़ार अंदर रोड पर सरकारी गेस्ट हाउस के पास एक होटल में कर रहा था। नेटवर्क नहीं होने से बात नहीं हो पायी तो हम सीधे चल दिए धनकर मोनेस्ट्री की तरफ , ये सोच कर की राकेश भी काज़ा ही होगा। धनकर से पहले पुरे रास्ते में एक ही जगह ऐसी अति है जहा नदी सड़क से सट कर बहती है। अब हर तरफ घाटी बर्फ से ढकी हुई थी , नदी का मुहाना भी बर्फ से ढका हुआ था।
नदी में
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। नदी से प्रार्थना कर हम उसमे गए और फिर गाड़ी भी घुमाई और इतने में राकेश और धीरेन्द्र भी आ गए , पता लगा की कहाँ गफलत हुई जिससे वो पीछे रह गए , इसीलिए सब प्लान ढंग से बना लेने चाहिए जिससे कोई असमंजस ना हो । यहाँ थोड़ी देर बर्फ पर नंगे पैर खड़े होने की प्रतियोगिता रखी जिसे "लेग्स ऑफ़ स्टील " नाम दिया , यानि " स्टील धातु के पैर " दरअसल इस के जरिये हम महसूस और आभास करना चाहते थे हमारे देशभक्त जो शहीद हुए हमारे देश की आज़ादी के लिए , अंग्रेज़ उन्हें किस तरह बर्फ की सिल्लियो पर रात भर अतय्चार करते थे और उन्होंने हमारे लिए सब दर्द सहे। सो उस दर्द का थोड़ा हिस्सा हम भी महसूस करे। उनके द्वारा दिए जीवन मूल्य हम अपने जीवन में अपना ही चुके है इसीलिए कोशिश रहती है कुछ अच्छा करने की अपने समाज के लिए।
तीन विजेता - 7 मिनट बाद प्रियोगिता समाप्त की जिससे शरीर को कोई हानि ना हो
ताबो से काज़ा मात्र 48 किलोमीटर है लेकिन रास्ता काफी कच्चा है तो समय काफी लगता है। काज़ा 2 बजे पहुँच और शहर लगभग बिलकुल बंद, खाने के भी वांदे। यहाँ से सीधे किब्बर गॉव के लिए निकल लिए ये सोच कर की वापस आ कर कुछ खाएंगे क्योकि रास्ते का भरोसा नहीं कितनी बर्फ मिले, क्योकि इधर से भारत सीमा का ये आखरी गॉव है। हर तरफ शानदार बर्फ ही बर्फ। सफेद रंग था बस हर तरफ। नीला आसमान और सफ़ेद रंग गजब ही नज़ारा। इससे अच्छा नज़ारा पहाड़ पर बस रंग बिरंगे फूल ही बिखेर सकते है। सड़क के दोनों तरफ गजब की बर्फ थी और हम जब किब्बर से मात्र 2 किलोमीटर दूर थे जब सड़क के दोनों तरफ बर्फ की दीवार थी। पहले तो देख लगा की मामला गंभीर है दिक्कत होगी लेकिन गाड़ी निकल जाएगी क्योकि सड़क पर टायर के निशान थे और गाड़ी के रगड़ने के निशान भी थे बर्फ की दीवार पर। पहला गियर लगाया और जैसे ही बीच में पहुंचे दीवार में गाड़ी दोनों तरफ फस गयी, साइड के शीशे बर्फ में रगड़ कर बंद हो गए , गाड़ी की बर्फ पर रगड़ने की आवाज़ आयी , मेने कहा "जरा शीशा नीचे उतरो और बताओ है क्या गुंजाईश"। नकुल और अनिल बोले भाई "गाड़ी फस गयी है आवाज़ आ रही हवा निकलने की टायर में से। मेने बस ये ही कहा " क्या बात कर रहे हो "
यही पर हुआ था कमाल
गाड़ी वापस ली उतर कर देखा पिछले टायर फट गया , अगले टायर में गहरा कट लग गया और साथ में पंक्चर हो गया। भगवान ये क्या हो गया , खैर कोई नहीं जल्दी-जल्दी यहाँ से गाड़ी आगे लेकर जानी है क्योकि ऊपर पहाड़ से पत्थर गिर सकते है जो जान और माल दोनों के लिए भयंकर खतरा है। गाड़ी से पाना निकाला और बोल्ट खोलने लगे , ये क्या बोल्ट ही नहीं खुले , एक भी बोल्ट टस से मस नहीं हुआ। पाना मुड़ गया पत्थर से पीटा थोड़ा सा भी सीधा नहीं हुआ ,पत्थर हाथ में जयादा चोट मार रहा था। फिर और दिमाग ख़राब हो गया। सब परेशान हो गए , बोल्ट नहीं खुलेगा तो काम कैसे चलेगा, ३:३० बज गए और शाम जल्द ही हो जाएगी और ऊपर ठंडी हवा जान ले रही थी इन सब स्तिथि में दो टायर ख़राब हो गए एक साथ जालिम ,इसकी तैयारी तो नहीं की थी क्योकि ऐसा कभी जीवन में ना हुआ, ना ही सोचा था और ना ही किसी के साथ होता देखा/सुना/पढ़ा । शिमला मुख्य शहर और वो लगभग 400 किलोमीटर दूर और काज़ा बिलकुल बंद था।मेने जतिन और करण को नीचे की मोनेस्ट्री की तरफ भेजा और कहा की कोई भी टाटा सुमो गाड़ी वाले को स्तिथि बता कर उसका पाना ले आओ , इतने में मै कुछ और सोचता हु। राकेश को फ़ोन किया और किस्मत की वो काज़ा में ही था , उसको स्तिथि बताई और गोटी पाना और टायर पंक्चर में लगाने वाली बत्तिया लेकर आने के लिए बोला , क्योकि साधारण पाने के मुकाबले गोटी पाना जयादा मजबूत होता है क्योकि स्टील धातु का होता है। इतने में आराम से दिमाग को शांत कर अगले टायर का पंक्चर सही किया, कट में साफ़ धागे दिख रहे थे इसका मतलब कभी भी धोखा दे सकता था ये टायर। अब 2 घंटे होने को आये और राकेश और धीरेन्द्र पुरे क़ज़ा शहर में बत्ती और गोटी पाना ढूंढ रहे थे। मेने इतने टाइम में पिछले टायर में 7 बत्तियों( ट्यूबलेस टायर का पंक्चर इससे ही सही करते ) फटे हुए टायर बंद करने की कोशीश की क्योकि इंतज़ार ज्यादा नहीं कर सकता था कुछ तो समाधान ढूंढ़ना था यहाँ से निकलने का। ये 7 बत्तियों ने 14 का काम किया क्योकि मोड़ कर ही टायर के अंदर जाती है , पंप से हवा भरी टायर में और गाड़ी भी वापस मोड़ने के लिए २ फुट ही ज्यादा जगह थी गाड़ी की लम्बाई से। गाड़ी में तीनो बैठे और चल दिए वापस काज़ा की तरफ। जैसे ही टायर कट वाली जगह घूम कर ऊपर आता उसमे से तेज़ी से हवा निकलती और फुस फुस की आवाज़ होती। बाहर भयंकर ठंडी हवा उसपर अनिल और नकुल बार बार चेहरा बाहर निकाल कर देखते की कही टायर में से सारी हवा तो नहीं निकल गयी। अब हर 500 मीटर पर टायर में हवा भरनी पड़ रही थी लेकिन उस सुनसान जगह से वापसी शुरू हो गयी थी। अंतिम भाग में : कैसे कैसे और परिस्थिति बिगड़ गयी और ऐसा काम हो गया अनजाने में की टायर का रिम कभी किसी पाने से नहीं खुल सकता ज़िंदगी भर। ऐसी परिस्थिति में कैसे अकल,मदद और हिम्मत दी भगवन ने जिससे घर वापस आ पाए।
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सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है
आप प्रकर्ति का दिल से सम्मान और रक्षा करोगे , प्रकर्ति आप को कभी मुसीबत में नहीं आने देगी
इस वर्ष जनवरी के बाद दूसरी बार सफेद स्पीति देखने का मन हुआ। जनवरी में हम 3 भाई रिकांग पिओ तक गए थे क्योकि बर्फ़बारी की वजह से रास्ते बंद थे। स्पीति जाने में जो मजा है वो लेह लदाख जाने में नहीं रहा क्योकि सड़के बहुत ही आराम दायक हो गयी है। लाहौल स्पीति एक बहुत ही शानदार जगह है जो शिमला से 350 किलोमीटर के आस पास है। और आज भी यहाँ जाना रोंगटे खड़े कर देता है। सर्दियों में स्पीति -शिमला होते हुए रामपुर -टापरी -करछम -नाको -काज़ा तक जाया जा सकता है क्योकि काज़ा के आगे कुन्जुम पास आता है जो जून महीने में खुलता है और अगर गर्मियों में रास्ता खुला हो तो कुन्जुम से चंद्रताल -छत्ररु होते हुए ग्रम्फू ( रोहतांग से 18 किलोमीटर ) पर मनाली -लेह लदाख रोड पर मिल जाता है। इस तरीके से आप अपना एक शानदार सफर पूरा कर सकते है। यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। मेरी नज़र में केवल स्पीति ही दुर्गम बची है ( किसी हाई पास की रोड को छोड़ दे तो ), क्योकि भयंकर पथरीला रास्ता और ऊपर से पहाड़ के पत्थर के टुकड़े हर वक़्त गिरते रहते है और दो बून्द बारिश हुई नहीं की पहाड़ ही सरक जाता है सड़क पर। यहाँ पर बहुत सारे आर्मी वाले कई सो किलोमीटर में जहा भी पहाड़ से खतरा होता वहा पर ड्यूटी देते हुए मिल जायेंगे , क्योकि ये वो पहला जनसेवक है , जो अपने से पहले देश और देशवासी के लिए जीते है। मेरा सत सत नमन हर एक आर्मी वाले को और हर उस इंसान को जो अपने से पहले दूसरे की भलाई के बारे में सोचता है।
घर पर-करण ,नकुल,में ,जतिन,और सबसे दाये अनिल
हमेशा की तरह रात 12 बजे चलने का प्रोग्राम तय था। पिछली रात एक घंटा भी नहीं सोया था क्योकि यूट्यूब पर लेह लदाख की वीडियो डाली थी जिसकी वजह से सुबह के 5 बज गए और फिर कभी माली , सिक्योरिटी गार्ड कभी नौकर कभी कोई और सभी अपनी अपनी गतिविधि में लग गए घर में। आवाज़ में नींद वैसे ही नहीं आती , सो 38 घंटे हो लगातार जागते हुए और अब पूरी रात और दिन फिर से गाडी चलनी , वैसे मेरे लिए कोई नयी बात नहीं 2-3 लगातार जागना। खैर गुडगाँव से नकुल अपने साथ जतिन ( 2015 में चंद्रताल से चंडीगढ़ तक लिफ्ट दी थी जब से छोटे भाई की तरह है क्योकि पढाई कर रहा है और पढ़ने वाले की जेब का हाल सब को पता होता है - इसको भी कैमरा और नए नए उपकरणों का बहुत शौक है ),करण ( नकुल के साथ कनवर्जिस में ही नौकरी करता है - बहुत शांत और सीधा इंसान -जो आज के समय में कोई अभद्र शब्द ना बोलता हो समझ लीजिए की किस युग का इंसान होगा वो ), अनिल बांगड़( ये राजस्थान और मेरे साथ व्हाट्स एप्प और फेसबुक पर काफी दिन से दोस्त है -शानदार दिलदार व्यक्ति , हिमालय से लगाव रखने वाला इंसान ) घर से रात 12 बजे यात्रा शुरू की और कुछ देर में शामली पहुँच गए और यहाँ हर तरफ जाम। जैसे तैसे इधर उधर करके निकले और करनाल तक बहुत बुरा हाल। अपने जीवन में 40 किलोमीटर लम्बा जाम पहली बार देखा और कारण एक चौक ,ऊपर से जाम में ट्रक ड्राइवर ट्रक बंद करके सो गए, आगे कुछ जाम नहीं पीछे लोग सोचते रहते की जाम खुलेगा। कमाल है आगे वाला जागेगा तभी तो चलेगा ,पीछे वाले अपनी गाडी में बैठ कर इंतज़ार करते रहते। इसिलए जाम में गाड़ी के बाहर आकर जाम खुलवाने की कोशिश करो ना की इंतज़ार। करनाल से सही 5:30 घंटे में शिमला पहुंचे और यहाँ सही आलू के बड़े बड़े पराठे खाये साथ ही स्वादिस्ट कॉफी। 8:30 बजे शिमला पार कर लिया और यहाँ भी जाम से दो दो हाथ करने पड़े। दिल में ख़ुशी थी की इस बार काज़ा तक जाऊँगा ही। राकेश और धीरेन्द्र ( हम तीनो ने ही साच पास दिसम्बर में बाइक से करने का कारनामा किया था ) बाइक से एक रात पहले ही काज़ा के लिए निकल लिए। हम दोपहर में 1:30 बजे टापरी पहुँच गए और पप्पू भाई के ढाबे पर फिर से गजब स्वादिस्ट खाना खाया। इस बार पप्पू भाई खाने के रुपये लेने भूल गए और मै 4 किलोमीटर वापस आया और उनको रुपये दिए।
gateway of Kinnaur
अभी रास्ता बहुत ही दुर्गम है , ऊपर से यहाँ की सबसे बड़ी समस्या यहाँ रास्ते के साथ साथ जो पहाड़ से पत्थर गिरते है वो है। भयंकर नोकीले पत्थर नीचे रास्ते पर और ऊपर से पता नहीं कब कितना भयंकर पत्थर आप पर गिर जाये , इसीलिए यहाँ चलते वक़्त लम्बी नज़र रास्ते पर सामने रखे और एक आँख पहाड़ पर रखे और साथ वाले को भी चौकन्ना रहने को कहे। शानदार रास्ते पर डर का भी अलग ही मजा है। पूह गॉव पार किया और फिर ये निर्णय लिया की आज शाम नाको रुकेंगे। राकेश से बात हुई तो पता लगा की वो रास्ते में फस गया था ( क्योकि यहाँ टाइमिंग होती है बम से धमाका कर रास्ता चौड़ा करने की , सो आप सब धयान रखे इस चीज़ का ) और वो भी नको ही रुका हुआ था। शाम 6:30 बजे खाब की चढ़ाई शुरू की और आराम से मजे करते हुए 8 बजे नाको पहुँच गए। रोड का काम यहाँ हमेशा चलता रहता है इसीलिए काफी जगह शानदार काली रोड मिलेगी।
दुर्गमता कम धीरे धीरे , क्योकि रोड अच्छी बना रहे धीरे धीरे
नाको में राकेश और धीरेन्द्र टॉर्च लिए हमारा इंतज़ार कर रहे थे। रोड पर ही होटल है जिसमे 2 कमरे है ,सो दोनों हमने ले लिए और खाना खाया बहुत ही सस्ता रहना खाना ,400 रूपया किराया और खाना भी सस्ता और स्वादिस्ट।
सितारों भरा होटल। .. इससे शानदार जगह क्या होगी रहने के लिए
सब शारीरिक रूप से थके हुए थे , कोई मेरे साथ नीचे नहीं आया। लेकिन मेरा मन था सितारों का फोटो लेने का जो मेरे को बहुत ख़ुशी देता है। हवा तेज़ थी और -12 डिग्री तापमान -30 लग रहा। 20 मिनट में कम्पन शुरू हो गयी लेकिन इतने में मेने कुछ शानदार फोटो ले लिए और फिर वापस कमरे में जाकर गरम पानी पिया और कल की मुसीबत और रोमाँच से बेखबर होकर सो गया। अगले भाग में : जब आप किसी भी शहर से 400 किलोमीटर / 2 दिन दूर हो और हिंदुस्तान के आखरी गॉव में आपकी गाड़ी के दो टायर फट जाये और नट ना खुले जिससे टायर भी ना बदल सके ,जब भगवान कैसे आपको हौसले ,हिम्मत और मदद भेजता है।
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।
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